किसानों की आमदनी बढ़ाने के साथ ही विभिन्न फसलों का उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाने के लिए कृषि वैज्ञानिकों और कृषि विश्वविद्यालयों के द्वारा नई उन्नत किस्मों का विकास किया जा रहा है।
ऐसी ही आलू की एक नई बायोफ़ॉर्टिफ़ाइड किस्म हैं “कुफरी जामुनिया”।
आलू की यह किस्म बैंगनी रंग की होती है, जो पोषक तत्वों से भरपूर है। किसान इस वर्ष आलू की इस किस्म की खेती करके अच्छी कमाई कर सकते हैं।
कुफरी जामुनिया किस्म की विशेषताएँ
आलू की इस किस्म का विकास आईसीएआर- केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान, शिमला, हिमाचल प्रदेश द्वारा किया गया है।
आलू की यह किस्म मध्यम अवधि व अधिक उपज देने वाली नई उन्नत प्रजाति है।
यह बुआई से लेकर कटाई तक लगभग 90 से 100 दिनों में तैयार हो जाती है। इसकी औसत उपज 320-350 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।
यह प्रजाति बायोफ़ोर्टिफ़ाइड है, इसमें पोषक तत्वों की मात्रा ज्यादा है।
विशेष रूप से कुफरी जामुनिया में एंथोसायनिन उच्च मात्रा में होता में होता है, जो इसके जीवंत बैंगनी गूदे में पाए जाने वाले शक्तिशाली एंटीऑक्सीडेंट हैं।
आलू की इस किस्म को सामान्य आलू की तुलना में अधिक दिनों तक भंडारित किया जा सकता है। साथ ही इसका स्वाद सामान्य आलू की तुलना में बेहतर होता है।
कुफरी जामुनिया को हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड (मैदानी इलाका), मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, गुजरात, उड़ीसा, असम, पश्चिम बंगाल और बिहार के लिए अनुशंसित किया गया है।
किसान इस तरह करें कुफरी जामुनिया की खेती
किसान इस किस्म के बीज कंदों को काली रूसी (ब्लैक स्कर्फ) व कन्दजनित एवं मृदाजनित रोगों से बचाव हेतु 3 प्रतिशत बोरिक अम्ल के घोल में 20 से 30 मिनटों तक डुबोकर उपचारित करें। बुआई से पहले आलुओं पर इसका छिड़काव करें।
इसके बाद छायादार स्थान पर सुखाकर बुआई करें। एक बार बनाये घोल को 20 बार तक प्रयोग किया जा सकता है।
एक हेक्टेयर क्षेत्र में आलू की बुआई के लिए लगभग 25-30 क्विंटल बीज की आवश्यकता होती है।
खेत में उर्वरकों के इस्तेमाल के बाद ऊपरी सतह को खोदकर उसमें बीज डालना चाहिए और उसके ऊपर भुरभुरी मिट्टी डाल देनी चाहिए।
पंक्तियों की दूरी 50-60 सेमी होनी चाहिए, जबकि पौधों से पौधों की दूरी 15 से 20 सेमी होनी चाहिए।
आलू की बुआई के समय कितना खाद-उर्वरक डालें
जुताई के समय खेत में अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद 15 से 30 टन प्रति हेक्टेयर की दर से मिला देनी चाहिए।
रासायनिक खादों का इस्तेमाल मृदा की उर्वराशक्ति, फसल चक्र और प्रजाति पर निर्भर होता है, इसलिए किसानों को मिट्टी जाँच के अनुसार ही अनुशंसित मात्रा में खाद डालनी चाहिए।
सामान्यतः आलू की बेहतर फसल के लिए प्रति हेक्टेयर 150 से 180 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 से 80 किलोग्राम फॉस्फोरस एवं 80 से 100 किलोग्राम पोटाश का प्रयोग करना चाहिए।
फॉस्फोरस व पोटाश की पूरी और नाइट्रोजन की आधी मात्रा बुआई के समय ही खेत में डालनी चाहिए।
बची हुई नाइट्रोजन को मिट्टी चढ़ाते समय खेत में डाला जाता है।
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