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छोटे से गांव के किसान दूर दूराज से खोजकर लाते हैं औषधीय पौधे, कर रहे हैं स्पेशल खेती

 

आप भी ऐसा कर कमा सकते हैं लाखों रुपये

 

खेती की इस अनोखी विधा से किसान रामलोटन कुशवाहा पूरे देश मे प्रसिद्धि पा रहे हैं.

वहीं, रामलोटन सरकार से अब‌ गांव में औषधीय पौधों की एक नर्सरी और संरक्षण केंद्र खोलने की मांग कर रहे है .

 

छोटे से गांव अतर्वेदिया के एक किसान अपनी खेती की विधा को लेकर न सिर्फ जिले में बल्कि अब देश में भी मशहूर हो चुके है.

किसान ने दूर दूराज से खोजकर विलुप्त औषधीय पौधों को लेकर अपने खेत मे लगाया है.

खेत में ही औषधीय पौधे व बीज का म्यूजियम बनाकर संरक्षित किया है.

किसान ने तब सुर्खियां बटोरी, जब पीएम मोदी ने मन की बात में किसान से बात की है. आप भी  औषधीय की खेती कर सकते हैं.

 

जानिए किसान रामलोटन कुशवाहा के बारे में…

सतना जिले की ऊंचेहरा तहसील के छोटे से गांव अतर्वेदिया के किसान रामलोटन कुशवाहा अपनी अनोखी खेती की विधा को लेकर अक्सर सुर्खियों में रहते है. 

किसान रामलोटन 40 साल से दूर दराज के इलाको से औषधीय पौधे खोजकर लाते और अपने खेत मे लगा लेता.

अब उनका पूरा खेत 100 से ज्यादा तरह के औषधीय पौधे से भरा हुआ है.

 

किसान रामलोटन खेत मे ही म्यूजियम बनाकर विलुप्त हो रहे औषधीय पौधों व बीजो को संरक्षित कर लिया है, ताकि जरुरतमंदों की मदद हो सके.  

किसान का म्यूजियम देखने काफी दूर दूर से लोग आ रहे हैं.

इन औषधीय पौधों की मदद से कई जटिल और असाध्य बीमारियों से ग्रस्त मरीजो का सफल ईलाज भी हो रहा है.

 

किसान रामलोटन से प्रभावित होकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात में न सिर्फ तारीफ की बल्कि प्रेरणा लेकर सरकारी एजेंसियों और लोगो को आगे बढ़ने की बात भी कहीं है.

प्रधानमंत्री मोदी ने किसान रामलोटन से बातचीत भी की थी.

 

आप भी कर सकते हैं औषधीय पौधों की खेती

औषधीय पौधों की खेती का चलन देश में तेजी से बढ़ रहा है. किसान आज इन पौधों को कमाई का प्रमुख जरिया बना रहे हैं.

सरकार भी औषधीय पौधों की खेती को प्रोत्साहित कर रही है.

 

अगर आप औषधीय खेती करने की योजना बना रहे हैं तो इस इस खाद पौधे की खेती कर सकते हैं, जिसका नाम है इसबलोग.

औषधीय फसलों के निर्यात में इसबगोल का पहला स्थान है.

 

हमारे देश से प्रतिवर्ष 120 करोड़ के मूल्य का इसबगोल निर्यात हो रहा है.

विश्व में इसके प्रमुख उत्पादक देश ईरान, इराक, अरब अमीरात, भारत और फिलीपींस हैं.

 

भारत में इसबगोल की खेती गुजरात, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में प्रमुखता से होती है.

मध्य प्रदेश की बात करें तो रतलाम, मंदसौंर, शाजापुर और उज्जैन में बड़े पैमाने पर किसान इसकी खेती कर रहे हैं.

 

औषधीय पौधों की खेती की बात करें तो यह हमेशा से ही एक एक अच्छा मौका रहा है क्योंकि इसमें निवेश कम होता है और कमाई काफी ज्यादा होती है.

इसबगोल का इस्तेमाल आयुर्वेदिक और एलोपैथिक दवाओं दोनों में होता है.

इसबगोल के कुल उत्पादन का 80 प्रतिशत हिस्सा भारत में उगाया जाता है.

 

होगी मोटी कमाई

डीडी किसान की रिपोर्ट के मुताबिक, एक हेक्टेयर में इसबगोल की फसल से लगभग 15 क्विंटल बीज प्राप्त होते हैं.

इसके अलावा सर्दियों में इसबगोल के दाम बढ़ जाते हैं जिससे आमदनी और ज्यादा हो जाती है.

अगर इसबगोल के बीजों को प्रोसेस कराया जाए तो और ज्यादा फायदा होता है.

 

प्रोसेस होने के बाद इसबगोल के बीजों में से लगभग 30 प्रतिशत भूसी निकलती है और इसी को इसबगोल का सबसे महंगा हिस्सा माना जाता है.

इसबगोल की खेती में से भूसी निकलने के बाद खली और गोली जैसे अन्य उत्पाद बचते हैं. जो करीब डेढ़ लाख रुपए तक में बिक जाते हैं.

 

भूसी में पाए जाते हैं तमाम औषधीय गुण

इसबगोल की भूसी में कई औषधीय गुण पाए जाते हैं और यह सेहत के लिए काफी गुणकारी है.

इसबगोल में फाइबर की मात्रा काफी अधिक होती है. फैट और कोलेस्ट्रॉल की मात्रा इसमें बिल्कुल भी नहीं होती है.

इसबगोल का सेवन हर उम्र के लोग कर सकते हैं. यह पेचिस, कब्ज, दस्त, मोटापा, डिहाइड्रेशन, डाइबिटीज आदि रोगों में गुणकारी है.

 

आम तौर पर इसबगोल भूसी को पानी में मिलाकर खाना सबसे ज्यादा फायदेमंद माना जाता है.

इसबगोल की भूसी को पानी में मिलाने से यह चिपचिपा जेल जैसा मिश्रण बन जाता है.

इस मिश्रण में न कोई गंध होती है और न ही कोई स्वाद होता है.

इसबगोल मधुमेह के नियंत्रण में भी काफी कारगर माना जाता है.

 

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