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धनिया की खेती से किसान कमा सकते हैं बढ़िया मुनाफा

 

जानिए इसकी खेती की A to Z जानकारी

 

आइए जानते है कि धनिया की खेती कैसे की जाती है. इसके लिए मिट्टी कैसी होनी चाहिए और इसकी उन्नत किस्में कौन सी हैं.

धनिया की खेती के बारे में A To Z जानकारी.

 

धनिया एक ऐसी फसल है जिसे किसान कच्चा और पक्का, दोनों रूप में बेचकर बढ़िया मुनाफा कमा सकते हैं.

इसके बीजों के बिना भारतीय मसाले का स्वाद ही अधूरा रह जाता है. देशभर में धनिया की मांग होती है.

इसकी खेती उत्तर प्रदेश, पंजाब, मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, बिहार, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, कनार्टक में ज्यादा की जाती है.

 

तो आइए जानते है कि धनिया की खेती कैसे की जाती है.

इसके लिए मिट्टी कैसी होनी चाहिए और इसकी उन्नत किस्में कौन सी हैं. धनिया की खेती के बारे में A To Z जानकारी.

 

फसल उत्पादन

फसल ज्यामिति: कतार से कतार की दूरी 25 से 30 से.मी. और पौधे से पौधे की दूरी 10 से.मी.

 

खाद और उर्वरक: 8-10 टन प्रति हेक्टेयर सड़ी हुई गोबर की खाद अथवा कम्पोस्ट को बुआई से एक माह पहले खेत में अच्छी तरह मिला देना चाहिए. 40-60 किलोग्राम नाइट्रोजन 30 किलोग्राम फॉस्फेट तथ 20 किलोग्राम पोटाश. नाइट्रोजन की आधी मात्रा एवं फॉस्फोरस तथा पोटाश की सम्पूर्ण मात्रा अंतिम जुताई के समय खेत में अच्छी तरह मिला देनी चाहिए और शेष मात्रा बुआई के 30 एवं 60 दिनों के बाद सिंचाई के साथ देनी चाहिए.

 

सिचांई: 3 से 4 सिंचाई, पहली सिंचाई बुवाई के 30-35 दिन बाद और दूसरी 60-65 दिन बाद एवं तीसरी सिंचाई 80-85 दिन बाद करनी चाहिए. 25-30 प्रतिश पानी बचाने के लिए बूंद-बूंद सिंचाई पद्धति का उपयोग करना चाहिए.

 

खरपतवार नियंत्रण: ऑक्सीडाइआर्जिल का बुआई के बाद तथा बीज अंकुरण से पहले 75 ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए उसके बाद बुवाई के 45 दिनों बाद गुड़ाई करनी चाहिए.

 

उत्पादन: सिंचित खेती में 18-20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर और बारानी खेती में 6 से 8 क्विंटल प्रति हेक्टेयर.

 

फसल संरक्षण

छाछ्या रोग: 20 से 25 किलोग्राम सल्फर पाउडर का खड़ी फसल पर भुरकाव किया जाना चाहिए अथवा 0.2 प्रतिशत भीगने वाले सल्फर या 0.1 प्रतिशत डाइनोकेप का छिड़काव करना चाहिए.

 

झुलसा रोग: प्रापिकोनाजोल फफुंदनाशक 0.1 प्रतिशत या कार्बेन्डाजिम 0.1 प्रतिश घोल का छिड़काव रोग आने से पूर्व भी 12-15 दिनों के अंतराल पर किया जाना चाहिए.

 

उकठा रोग: उचित फसल च्रक विधि को अपनाया जाना चाहिए तथा इस रोग से बचाव के लिऐ बीज का बाविस्टिन/थाइरम 1.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज को बुवाई पूर्व उपचारित करना चाहिए.

 

माहू या एफिड: डॉइमिथोएट 0.03 प्रतिशत और इमेडाक्लोरॉफीड 0.003 प्रतिशत का छिड़काव करना चाहिए.

 

फसल सुधार

उपयुक्त जलवायु: धनिये की खेती के लिए प्रायः हर प्रकार की जलवायु में की जा सकती है. केवल फसल में फूल लगने के समय अत्यधिक पाला हानिकारक होता है.

 

मृदा का चयन: धनिये की खेती के लिए लवणीय, क्षारीय एवं अत्याधिक बलुई मिट्टीयों को छोड़कर शेष सभी प्रकार की मिट्टियां इसकी खेती के लिए उपयुक्त है.

 

बीज की उन्नत प्रजातियां: अजमेर कोरियण्डर-1, आर.सी.आर-41, आर.सी.आर.-435, आर.सी.आर-436, आर.सी.आर-684, आर.सी.आर.-446, गुजरात धनिया-1

 

बुवाई का समय: मध्य अक्टूबर से मध्य नवम्बर तक.

 

बीज दर: 10 से 16 किलाग्राम बीज प्रति हेक्टेयर सिंचित खेती के लिए तथा असिंचित खेती के लिए 20 किग्रा/हेक्ट.

 

बीज उपचार: कार्बेन्डेजिम और केप्टान 2.5-3 ग्राम प्रति किलो ग्राम बीज या ट्राईकोर्डमा 4-10 ग्राम  प्रति किलोग्राम बीजप्रति हैक्यटर से उपचारित करना चाहिए.

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