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आलू छोड़ डंगरा और तरबूज की खेती कर रहे किसान

 

आमतौर पर डंगरा, तरबूज की फसल नदी के किनारे ही लहलहाती है

 

जिसे लगाकर किसान अच्छा खासा मुनाफा भी कमाते हैं, लेकिन अब डंगरा और तरबूज की फसल नदी के किनारे के बजाय खेतों मे भी हो रही है। उमरेठ ब्लॉक की गिनती आलू उत्पादक ब्लॉक के तौर पर होती है।

यहां का आलू निजी कंपनियां भी खरीदती हैं, जिससे किसानों को मुनाफा भी होता है, लेकिन इस सीजन में आलू के दामों में गिरावट आई है।

हालत ये है कि आलू 10 से 15 रुपये प्रति किलो की दर से बिक रहा है। जिसके कारण अब किसानों ने डंगरा, तरबूज की खेती करने का निर्णय लिया है।

 

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वरिष्ठ उद्यानिकी अधिकारी शालिगराम चौकसे ने बताया कि नदी के किनारे डंगरा, तरबूज की फसल इसलिए बेहतर होती है, क्योंकि उसमें पानी काफी मात्रा में लगता है। यही वजह है कि किसान मल्चिंग तकनीक से डंगरे की खेती कर रहे हैं।

पिछले सीजन में किसानों ने 700 हेक्टेयर में डंगरा और तरबूज लगाया था, लेकिन इस बार 1500 हेक्टेयर जमीन में डंगरा और तरबूज लगाया गया है। रिधोरा के किसान राजू मरकाम ने बताया कि अप्रैल तक उनकी फसल पककर तैयार हो जाएगी।

मई तक सभी किसानों का काम खत्म हो जाएगा। डंगरा और तरबूज में खासियत ये है कि आलू की तरह यह फसल भी ही एक बार में निकल जाती है, जिससे काफी फायदा होता है।

 

किसानों को होता है फायदा

किसानों को हमेशा वही फसलें रास आती है, जो एक बार में ही मुनाफा दें। डंगरा, तरबूज की खेती आमतौर पर नदी किनारे होती है, लेकिन रेत उत्खनन के चलते अब नदी किनारे डंगरा, तरबूज की खेती नहीं हो रही है।

वहीं मल्चिंग के जरिए किसान डंगरा, तरबूज की खेती कर रहे हैं। इस बार डंगरा, तरबूज के बेहतर दाम मिलने की उम्मीद से किसानों ने बड़े पैमाने पर डंगरा, तरबूज की फसल लगाई है, जिसके बेहतर परिणाम मिलने की उम्मीद है।

 

वर्जन

पिछले सीजन में 700 हेक्टेयर में किसानों ने डंगरा, तरबूज की खेती की थी। इस सीजन में 1500 हेक्टेयर जमीन में डंगरा और तरबूज की फसल किसानों ने लगाई है।

मल्चिंग तकनीक से किसान बेहतर तरीके से खेती कर रहे हैं, जिसके बेहतर परिणाम मिलने की उम्मीद है।

शालिगराम चौकसे, वरिष्ठ उद्यानिकी अधिकारी

 

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source : naidunia

 

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