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नींबू का बढ़िया उत्पादन चाहते हैं तो इन कीट और रोगों से करना होगा बचाव

 

कीट और रोगों से करना होगा बचाव

 

जैसा की दूसरी फसलों के साथ होता है, नींबू की फसल को भी कीट और रोग प्रभावित करते हैं.

लेकिन अगर किसान उनकी समय पर पहचान कर लें तो नुकसान से बच सकते हैं.

इस खबर में हम नींबू में लगने वाले कीट और रोगों से बचाव से तरीकों के बारे में जानेंगे.

 

नींबू अपनी औषधीय गुणों के लिए जाना जाता है. विटामिन सी भरपूर इसके फल हमेशा पसंद किए जाते हैं.

यही कारण है कि बाजार में इसकी उपलब्धता भी हमेशा रहती है और मांग बनी रहती है.

किसान इसकी खेती से बढ़िया मुनाफा कमा सकते हैं.

आप भी नींंबू की खेती से अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं.

जैसा की दूसरी फसलों के साथ होता है, नींबू की फसल को भी कीट और रोग प्रभावित करते हैं.

लेकिन अगर किसान उनकी समय पर पहचान कर लें तो नुकसान से बच सकते हैं.

इस खबर में हम नींबू में लगने वाले कीट और रोगों से बचाव से तरीकों के बारे में जानेंगे.

पर्णसुरंगी कीट

इस कीट की सूंडी नई पत्तियों में घुसकर उनमें टेढ़ी-मेढ़ी सुरंग बनाती है, जिससे पौधे की ओज व बढ़वार प्रभावित होती है तथा पौधे की फलत भी मारी जाती है.

इसके नियंत्रण के लिए मोनोक्रोटोफॉस 40 ई.सी. 1 मिली प्रति लीटर पानी या डेल्टामिश्रित 2.8 ई.सी. 5 मिली प्रति 10 लीटर का 20 दिन के अन्तर में दो बार छिड़काव करना चाहिए.

 

नींबू की तितली

इस तितली की सूंडी वाली अवस्था ही हानिकारक होती है, जो पत्तियों को खाकर पौधे को नुकसान पहुंचाती है.

इसका प्रौढ़ चमकीले रंग की बड़ी तितली होती है.

एक वर्ष में इस कीट की तीन से पांच पीढ़ियां पायी जाती हैं और यह सितंबर महीने में अधिक सक्रिय होती है.

इसकी रोकथाम के लिए बी.टी. 1 ग्राम प्रति लीटर पानी या इण्डोसल्फान 35 ई.सी. की 2 मिली दवा प्रति लीटर पानी के साथ मिलाकर छिड़काव करना चाहिए.

 

रोग नियंत्रण

कैंकर या साइट्रस कैंकर: यह रोग जेन्थोमोनास सिट्री नामक जीवाणु (बैक्टीरिया) द्वारा फैलता है.

यह मुख्य रूप से नींबू के पौधों को प्रभावित करता है. इस रोग का प्रभाव पत्तियों, छोटी शाखाओं, कांटों व फलों पर दिखाई देता है.

शुरू में छोटे आभायुक्त पीले धब्बे बनते हैं जो बाद में 3-4 मिमी. आकार के भूरे रंग के व स्पंजी हो जाते हैं.

ये धब्बे फलों की अपेक्षा पत्तियों पर अधिक स्पष्ट होते हैं. यह रोग वर्षा ऋतु में अधिक फैलता है तथा कागजी नींबू को अधिक प्रभावित करता है.

इस रोग के नियंत्रण के लिए वर्षा के दिनों में 0.2 प्रतिशत ब्लाइटाक्स 50 का छिड़काव 15 दिन के अन्तर में करना चाहिए.

स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट 500 पी.पी.एम. का घोल भी इसके नियंत्रण में प्रभावी पाया गया है.

 

फूल एवं फल का गिरना: नींबू वर्गीय फलों में फूल मुख्य रूप से बसन्त ऋतु में (फरवरी-मार्च) मिश्रित कली पर आते हैं परन्तु नींबू की खट्टी प्रजातियों में फूल लगभग पूरे वर्ष आते रहते हैं.

नींबू वर्गीय फलों में फल झड़ने/गिरने की समस्या पायी जाती है. पौधों पर 2,4-डी का 8 पी.पी.एम, एन.ए.ए. का 30 पी.पी.एम. तथा जी.ए.-3 का 30 पी.पी.एम. का छिड़काव करना फल झड़न रोकने में लाभदायक पाया गया है.

 

फलों का फटना- फलों के फटने की समस्या मुख्य रूप से नींबू तथा माल्टा में पायी जाती है.

फल प्रायः उस समय फटते हैं जब शुष्क मौसम में अचानक वातावरण में आर्द्रता आ जाती है.

गर्मी में बरसात होने से फलों के फटने की समस्या बढ़ जाती है.

इस समस्या की रोकथाम के लिए आवश्यकतानुसार हल्की सिंचाई करनी चाहिए.

इसके अलावा पौधों पर 10 पी.पी.एम. जिब्रेलिक अम्ल का छिड़काव करने से फलों के फटने की समस्या काफी कम की जा सकती है.

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