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प्याज की खेती करने वाले किसानों के लिए जरूरी खबर

 

तुरंत नहीं उठाया ये कदम तो होगा बड़ा नुकसान

 

भारत में महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात, आंध्र प्रदेश, बिहार, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा और कर्नाटक प्रमुख प्याज उत्पादक राज्य हैं.

 

प्याज में रोग एवं कीट नियंत्रण जरूरी है, क्योंकि भारत में विभिन्न प्रकार की सब्जियों की खेती में प्याज का बड़ा महत्व है.

जो एक नगदी कंदीय फसल के रूप में जानी जाती है.प्याज एक बहुगुणी फसल है, जिसका प्रयोग सलाद, मसाला, अचार और सब्जी बनाने में होता है.

भारत में महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात, आंध्र प्रदेश, बिहार, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा और कर्नाटक प्रमुख प्याज उत्पादक राज्य हैं.

प्याज की उत्पादकता पर कीट एवं रोग अत्यधिक प्रभाव डालते हैं, जिसमें फसलों को विभिन्न प्रकार से क्षति पहुँचती है.

 

श्याम वर्ण (काला धब्बा)

महाराष्ट्र राज्य में खरीफ मौसम में इस बीमारी का प्रकोप अधिक होता है।

यह रोग कोलेटोट्रायकम ग्लेओस्पोराइडम कवक से होता है.

रोग के प्रारम्भ में पत्तियों के बाहरी भाग पर जमीन से लगने वाले भाग में राख के रंग के चकते बनते हैं।

जो बाद में बढ़ जाते हैं तथा सम्पूर्ण पत्तियों पर काले रंग के उभार दिखने लगते हैं। ये उभार गोलाकर होते हैं।

इससे प्रभावित पत्तियाँ मुरझाकर मुड़ जाती है.

नियंत्रण के उपाय

1.रोपाई से पूर्व पौधों के जड़ों को कार्बान्डाजिम या क्लोरोथलोनिल के 0.2: धोल में डुबाना चाहिए.

2.पौधशला के लिए उठी हुर्इ क्यारियाँ बनानी चाहिए.

3.पौधशाला में बीज पतला बोना चाहिए.

 

थ्रिप्स कीट

यह एक छोटे आकार का कीट होता है, जिसके शिशु और वयस्क दोनों पत्तियों से रस चूसते हैं.

पत्तियों पर सफेद धब्बे बनते हैं, जो बाद की अवस्था में पीले सफेद हो जाते हैं. यह कीट शुरू की अवस्था में पीले रंग का होता है जो आगे चलकर काले भूरे रंग का हो जाता है.

नियंत्रण के उपाय

1. प्याज के बीज को इमिडाक्लोप्रिड 70 डब्ल्यू एस पाउडर से (2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज) शोधित करके बोना चाहिए|

2. मुख्य खेत में रोपाई के उपरांत डाईमेथोएट 30 ई सी की 1 मिलीलीटर मात्रा या फॉस्फामिडॉन 85 ई सी 0.6 प्रतिशत की 1 मिलीलीटर मात्रा प्रति लीटर में मिलाकर 2 से 3 छिड़काव 15 दिन के अंतराल पर करें.

 

बैंगनी धब्बा (पर्पल ब्लाच)

आमतौर पर यह बीमारी प्याज उगाने वाले सभी क्षेत्रों में पायी जाती है. यह रोग फंफूद (अल्टरनेरिया पोरी) से होता हैं.

यह रोग प्याज की पत्तियों, तनों और डंठलों पर लगती हैं|

रोग ग्रस्त भाग पर सफेद भूरे रंग के धब्बे बनते हैं, जिनका मध्य भाग बाद में बैंगनी रंग का हो जाता है. इस रोग से भंडारण के समय में प्याज सड़ने लगती है, जिससे भारी क्षति होती है.

नियंत्रण के उपाय

1. प्याज में रोग नियंत्रण हेतु प्रतिरोधी प्रजाति के बीज का प्रयोग करना चाहिए

2. बुवाई से पूर्व प्याज के बीज को थीरम 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम से शोधित करना चाहिए

3. इस रोग का प्रकोप मुख्य खेत में होने पर क्लोरोथैलोनिल 75 प्रतिशत की 2 ग्राम मात्रा का डाइथेन एम- 45 की 2.5 गाम मात्रा प्रति लीटर पानी के साथ 0.01 सैंडोविट या कोई चिपचिपा पदार्थ अवश्य मिलाकर 10 दिन के अंतराल पर 3 से 4 छिड़काव करना चाहिए.

 

जीवाणु मृदु विगलन

यह रोग इर्विनिया कैरोटोवोरा नामक जीवाणु से होता है.

इस रोग के संक्रमण से पत्तियाँ पीली पडने लगती है तथा ऊपर से नीचे की तर सूखने लगती है.

अधिक संक्रमण होने पर पौध 1 सप्ताह में सूख जाती है. इस रोग से प्याज बीज फसल में अधिक नुकसान होता है.

नियंत्रण के उपाय

1. स्वस्थ नर्सरी की रोपाई करनी चाहिए

2. प्याज में रोग के लक्षण दिखने पर एन्टीबायोटिक स्ट्रेप्टोसाइक्लिन का 200 पीपीएम पानी के घोल का छिडकाव करें|

3. जैव नियंत्रक जीवाणु स्यूडोमोनास फ्लूओरिसेन्स की 5.0 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से रोपाई के पूर्व खेत मिला देना चाहिए|

 

भूरा विगलन रोग

यह रोग स्यूडोमोनास ऐरूजिनोसा नामक जीवाणु से होता है|

यह रोग आमतौर पर प्याज भण्डारण के समय में लगता है|

इस बीमारी का प्रकोप प्याज के कंदों के गर्दन वाले भाग से शुरू होता है, जो बाद में सड़कर गंध करने लगता है.

नियंत्रण के उपाय

प्याज की खुदाई करने के उपरांत इसे अच्छी प्रकार से सुखा लेना चाहिए तथा भण्डारण कम नमी व हवादार कमरे में करना चाहिए|

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