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कोरोना लॉकडाउन में केला की खेती का किया नवाचार

 

16 लाख लागत लगाकर 1 करोड़ रुपये की हुई फसल

 

कोरोना लॉकडाउन में किसान जोगेंद्र सिंह ने नवाचार करते हुए केला की खेती शुरू की। करीब 16 लाख रुपये लागत लगाने पर उसकी फसल एक करोड़ रुपये कीमत की हो गई है। कोरोना से आत्मनिर्भर बनने की यह दास्तान है रायसेन जिला के बाड़ी तहसील के ग्राम किवलझिर के किसान जोगेंद्र सिंह की। पूरी दुनिया में जब लोग कोविड-19 महामारी के कारण अस्त-व्यस्त थे तभी जोगेंद्र उम्र 38 वर्ष ने अपने 15 एकड़ खेत में केला की खेती आरंभ की।

 

जोगेंद्र ने बताया कि कोरोना संक्रमण के दौरान इम्युनिटी बढ़ाने के लिए केला का उपयोग बढ़ गया था। तभी उसने केला की खेती करने की ठानी। रायसेन जिला में इससे पहले केला की खेती कहीं नहीं हुई थी। इसलिए उसने उद्यानिकी विभाग के सहायक संचालक नरेश सिंह तोमर से संपर्क किया। नरेश सिंह ने बताया कि काली मिट्टी केला की पैदावार के लिए उपयुक्त होती है।

 

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जोगेंद्र ने उद्यानिकी विभाग की तकनीकी मदद और बुरहानपुर में रहने वाले अपने रिश्तेदारों की सलाह पर जी-9 किस्म के केला की खेती करना आरंभ कर दिया। उसने 5 जुलाई 2020 को अपने 15 एकड़ खेत में 25,500 केला के पौधे लगाए। इनके ही चचेरे भाई पवन सिंह ने भी 7 जुलाई को अपने 10 एकड़ खेत में 15,000 केला के पौधों का रोपड़ कराया। नियमित देखभाल और खाद-पानी इत्यादि देने से दोनों ही किसानों के खेतों में केला की खेती का नवाचार सफल हुआ है।

 

जोगेंद्र ने बताया कि दिल्ली के एक व्यापारी ने उनकी 15 एकड़ में लगी केला की फसल का मुआयना करने के बाद नीलामी में हमारी फसल एक करोड़ रुपये में खरीद ली है। इस तरह उन्हें 16 लाख रुपये लागत लगाने के बाद एक करोड़ की केला की फसल प्राप्त हुई है। जून में व्यापारी हमारे खेत से केला की फसल काटकर ले जाएगा।

 

जिला में केला की पैदावार पहली बार हुई

रायसेन जिला में पहली बार नवाचार के रूप में किसान जोगेंद्र सिंह व पवन सिंह ने केला की फसल लगाई थी। नर्मदा नदी के कछार क्षेत्र बाड़ी तहसील अंतर्गत काली मिट्टी केला की पैदावार के लिए उपयुक्त है। यहां नवाचार के रूप में जी-9 किस्म के केला की अच्छी पैदावार हुई है। अगले सीजन से अन्य कई किसानों को केला की खेती करने प्रोत्साहित किया जाएगा।

 

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यह फसल कम लागत में ज्यादा मुनाफा देने वाली है। किसानों को केला की उपज बेचने का बाजार भी उपलब्ध कराएंगे। दिल्ली के कई व्यापारियों से इस संबंध में हमारी चर्चा हुई है।

 

स्त्रोत : कृषि जागरण 

 

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