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पपीते में लगने वाले प्रमुख रोग एवं उनका उपचार

 

पपीते के पौधों में रोग एवं उनकी रोकथाम

 

कम लागत तथा कम समय में अधिक उत्पादन और मुनाफा देने वाली फसलों में से एक फसल पपीता भी है।

इसकी खेती देश के कई राज्यों में होती है। पपीते की खेती गर्म तथा ठण्ड दोनों तरह के जलवायु में की जा सकती है।

किसान अधिक आय के लिए खेत की मेड़ो पर भी पपीता लगाकर लाभ कम सकते हैं।

जलवायु तथा भोगोलिक आधार पर पपीते की खेती 10 से लेकर 26 डिग्री सेल्सियस में की जा सकती है।

साथ ही पपीते का बाजार स्थानीय स्तर पर आसानी से उपलब्ध हो जाता है।

पपीते में लगने वाले रोग से फसों की काफी हानि होती है जिससे किसानों को काफी नुकसान होता है। समय पर नियंत्रण कर इन रोगों से होने वाले नुकसान से बचा जा सकता है।

 

  1. आर्द्रगलन रोग
  2. पर्ण कुंचन रोग
  3. तना या पाद विगलन रोग
  4. फल सडन रोग
  5. कली एवं फल के तनो का सड़ना

 

आर्द्रगलन रोग

यह रोग मुख्य रूप से पौधशाला में कवक के कारण होता है जिससे पौधों को काफी नुकसान होता है।

इसका प्रभाव सबसे अधिक नए अंकुरित पौधों पर होता है, जिससे पौधा जमीन के पास से सड़-गल कर नीचे गिर जाता है।

 

रोग की रोकथाम

इसके उपचार के लिए नर्सरी की मृदा को सबसे पहले फर्मेल्डीहाइड के 2.5 प्रतिशत घोल से उपचारित कर पाँलीथीन से 48 घंटों के लिए ढक देना चाहिए।

बीज को थिरम या कैप्टन (2 ग्राम प्रति किलोग्राम) दवा से उपचारित करके ही बोना चाहिए।

या पौधशाला में लक्षण दीखते ही मेटालैक्सिल मैन्कोजैब के मिश्रण का 2 ग्राम/लीटर पानी से छिडकाव करना चाहिए।

 

पर्ण कुंचन रोग

पर्ण-कुंचन (लीफ कर्ल) रोग के लक्षण केवल पत्तियों पर दिखायी पड़ते हैं। रोगी पत्तियाँ छोटी एवं झुर्रीदार हो जाती हैं।

पत्तियों का विकृत होना एवं इनकी शिराओं का रंग पीला पड़ जाना रोग के सामान्य लक्षण हैं।

रोगी पत्तियाँ नीचे की तरफ मुड़ जाती हैं और फलस्वरूप ये उल्टे प्याले के अनुरूप दिखायी पड़ती हैं।

यह पर्ण कुंचन रोग का विशेष लक्षण है। पतियाँ मोटी, भंगुर और ऊपरी सतह पर अतिवृद्धि के कारण खुरदरी हो जाती हैं।

रोगी पौधों में फूल कम आते हैं। रोग की तीव्रता में पतियाँ गिर जाती हैं और पौधे की बढ़वार रूक जाती है।

 

रोग की रोकथाम

इसके नियंत्रण के लिए रोगी पौधे को उखाड़कर फेक देना चाहिए।

सफेद मक्खी के नियंत्रण के लिए डाइमिथोएट 1 मि.ली. का प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिडकाव करना चाहिए।

 

तना या पाद विगलन

पपीते के इस रोग के सर्वप्रथम लक्षण भूमि सतह के पास के पौधे के तने पर जलीय दाग या चकते के रूप में प्रकट होते हैं।

अनुकूल मौसम में ये जलीय दाग (चकते) आकार में बढ़कर तने के चारों ओर मेखला सी बना देते हैं।

रोगी पौधे के ऊपर की पत्तियाँ मुरझा जाती हैं तथा उनका रंग पीला पड़ जाता है और ऐसी पत्तियाँ समय से पूर्व ही मर कर गिर जाती हैं।

रोगी पौधों में फल नहीं लगते हैं यदि भाग्यवश फल बन भी गये तो पकने से पहले ही गिर जाते हैं।

तने का रोगी स्थान कमजोर पड़ जाने के कारण पूरा पेड़ आधार से ही टूटकर गिर जाता है और ऐसे पौधों की अंत में मृत्यु हो जाती है।

तना विगलन सामान्यतः दो से तीन वर्ष के पुराने पेड़ों में अधिक होता है। नये पौधे भी इस रोग से ग्रस्त होकर मर जाते हैं।

पपीते की पैौधशाला में आर्द्रपतन (डेपिंग ऑफ) के लक्षण उत्पन्न होते हैं।

 

रोग की रोकथाम

पपीते के बागों में जल-निकास का उचित प्रबंध होना चाहिए जिससे बगीचे में पानी अधिक समय तक न रूका रहे।

रोगी पौधों को शीघ्र ही जड़ सहित उखाड़ कर जला देना चाहिए। ऐसा करने से रोग के प्रसार में कमी आती है।

भूमि सतह के पास तने के चारों तरफ बोडों मिश्रण (6:6:50) या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड (0.3 प्रतिशत), टाप्सीन-एम (0.1 प्रतिशत), का छिङ्काव कम से कम तीन बार जून-जुलाई और अगस्त के मास में करना श्रेष्ठ रहता है।

 

फल सडन रोग

इस रोग के कई कारण हैं जिसमें कोलेटोट्र्रोईकम ग्लीयोस्पोराईड्स प्रमुख है। आधे पके फल रोगी होते हैं।

इस रोग में फलों के ऊपर छोटे गोल गीले धब्बे बनते हैं। बाद में ये बढ़कर आपस में मिल जाते हैं तथा इनका रंग भूरा या काला हो जाता है।

यह रोग फल लगने से लेकर पकने तक लगता है जिसके कारण फल पकने से पहले ही गिर जाते हैं।

 

रोग की रोकथाम

कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 2.0 ग्राम/लीटर पानी में या मेन्कोजेब 2.5 ग्राम/लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करने से रोग में कमी आती है।

रोगी पौधों को जड़ सहित उखाड़ कर जला देना चाहिए और रोगी पौधों के स्थान पर नए पौधे नहीं लगाना चाहिए ।

 

कली एवं फल के तनो का सड़न

यह पपीते में लगने वाली एक बिमारी है जो फ्यूजैरियम सोलनाई नामक कवक द्वारा लगती है।

प्रारंभ में इस रोग के चलते फल तथा कली के पास का तना पीला हो जाता है जो बाद में पुरे तने पर फ़ैल जाता है।

जिसके कारण फल सिकुड़ जाते हैं एवं बाद में गिर जाते हैं।

 

रोग की रोकथाम

इस रोग की रोकथाम के लिए कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 2.0 ग्राम/लीटर पानी में मिलाकर छिडकाव करना चाहिए एवं रोगी पौधे को उखाड़कर जला देना चाहिए।

पपीते के बगीचे के आस-पास कद्दू कुल के पोधे नहीं लगाना चाहिए।

 

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