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टमाटर की इस किस्म से मोटी कमाई कर सकते हैं किसान, फसल में नहीं लगेंगे कीट व रोग

 

एक पौधे में होगी 18 किलो पैदावार

 

अर्का रक्षक भारत की पहली त्रिगुणित रोग प्रतिरोधी किस्म है.

त्रिगुणित यानी तीन रोगों, पत्ती मोड़क विषाणु, जीवाणुविक झुलसा और अगेती अंगमारी से रक्षा करने वाली.

इसकी एफ-1 संकर प्रजाति का एक पौधा 18 किलो टमाटर दे सकता है.

 

सब्जियां बहुत नाजुक फसल होती हैं. मौसम की जरा सी मार इन्हें नष्ट करने के लिए काफी है.

नाजुक होने के कारण ही इनमें कीड़े और बीमारियों के लगने का अंदेशा ज्यादा रहता है.

अगर बात टमाटर की करें तो इनमें तीन समस्याएं ज्यादा आती हैं. पत्ती मोड़क विषाणु, जीवाणुविक झुलसा और अगेती अंगमारी.

अकेले अंगमारी रोग ही फसल को 70 से 100 फीसदी तक नुकसान पहुंचा सकता है.

ऐसे में हमारे वैज्ञानिकों ने अपना हुनर दिखाया और टमाटर की ऐसी किस्म तैयार की, जिसमें बीमारियों से लड़ने की क्षमता थी और कीटों का भी मुकाबला कर सकती थी.

 

बात 2012-13 की है. मणिपुर के विष्णुपुर जिले के रहने वाले किसान टमाटर की फसल को लेकर बहुत परेशान थे.

समस्या ये थी कि इनके पास रोग प्रतिरोधी किस्म मौजूद नहीं थी, जिसकी वजह से यहां उपज कम हो रही थी.

बात वैज्ञानिकों तक पहुंची तो उन्होंने अर्का रक्षक किस्म से किसानों को रूबरू कराया.

 

काफी मशहूर हो चुकी है टमाटर की यह किस्म

विष्णुपर कृषि विज्ञान केंद्र ने अर्का रक्षक किस्म को किसानों तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.

यहां के वैज्ञानिकों ने समस्याओें को सुना और अर्का रक्षक किस्म के बारे में 230 किसानों को जानकारी दी.

उन्होंने किसानों के बीच जाकर इसका प्रदर्शन भी किया और खेतों में जाकर परीक्षण भी.

 

नतीजे चौंकाने वाले थे. इस किस्म की उपज सामान्य प्रजातियों से ज्यादा पाई गई और किसानों को लाभ भी अधिक हुआ.

परीक्षण दो साल तक चला. सफल परीक्षण से किसान उत्साहित हुए. धीरे-धीरे ही अर्का रक्षम किस्म लोकप्रियता की सीढ़ियां चढ़ने लगी.

 

अर्का रक्षम किस्म सिर्फ मणिपुर तक ही सीमित नहीं रही. इसका खूब विस्तार हुआ.

कर्नाटक में एक इलाके के किसानों ने बीमारियों से परेशान होकर टमाटर की खेती ही छोड़ दी थी लेकिन अर्का रक्षक में उन्हें उम्मीद की किरण नजर आई.

 

कई देशों में है इस किस्म की मांग

अर्का रक्षक भारत की पहली त्रिगुणित रोग प्रतिरोधी किस्म है. त्रिगुणित यानी तीन रोगों, पत्ती मोड़क विषाणु, जीवाणुविक झुलसा और अगेती अंगमारी से रक्षा करने वाली.

इसकी एफ-1 संकर प्रजाति का एक पौधा 18 किलो टमाटर दे सकता है.

 

इस किस्म को 2010 में बेंगलुरु स्थित भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान ने विकसित किया.

इसकी आरंभिक उपज 75 से 80 टन प्रति हेक्टेयर रही. संकर प्रजाति के फल गोल और बड़े होते हैं.

गहरे लाल रंग के हर टमाटर का वजन 90 से 100 ग्राम के आसपास होता है.

 

ठोस होने की वजह से ये दूर-दराज के बाजार तक ले जाने के लिए उपयुक्त होते हैं. साथ ही प्रसंस्करण के लिए इसे बिल्कुल अनुकूल माना गया है.

टमाटर की अर्का रक्षक किस्म की सफलता को देखते हुए कई देशों से इसके बीज की मांग आ रही है.

इस मांग को पूरा करने के लिए अर्का रक्षक के संकर एफ-1 किस्म के बीज का उत्पादन बड़ी मात्रा में किया जा रहा है.

 

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