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चौलाई की खेती करने का अभी उपयुक्त समय

 

इसके फायदे और खेत की तैयारियां

 

मैदानी क्षेत्रों में इसे नवंबर मध्य से लेकर मध्य दिसंबर तक बोना चाहिए.

बुवाई के लिए प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 2 से 2.5 किलो ग्राम बीज पर्याप्त होता है.

अन्नापूर्णा दुर्गा, सुवर्णआ, पीआरए-1, पीआरए-2 और पीआरए-3 चौलाई की उन्नत किस्में हैं.

 

भारत में चौलाई की खेती प्राचीन समय से ही हो रही है और इसका कई रूपों में इस्तेमाल किया जाता है.

विश्वभर में चौलाई की लगभग 60 और भारत में करीब 20 प्रजातियां हैं.

अपने देश में इसकी खेती लगभग सभी राज्यों में की जाती है, लेकिन दक्षिण-पश्चिम व पहाड़ी राज्यों में इसे मुख्य रूप से उगाया जाता है.

 

चौलाई में अन्य अनाजों की अपेक्षा अधिक पोषक तत्व पाए जाते हैं. इसके बीज में प्रोटीन लगभग 17.9 प्रतिशत पाई जाती है.

कार्बोहाइड्रेट, वसा, पौष्टिक रेशा और खनिज इत्यादि भी चौलाई में अच्छी मात्रा में पाए जाते हैं.

इसके अलवा, एक्सॉर्बिक एसिड, राइबोफ्लेविन, पोटैशियम, कैल्शियम, फॉस्फोरस, मैग्निशियम और कॉपर भी मौजूद रहते हैं.

 

23-35 डिग्री तापमान होता है उपयुक्त

इसकी खेती लगभग सभी प्रकार के वातावरण में की जा सकती है. सीधा पौधा होने के कारण इसकी बढ़वार पर प्रकाश अवधि व तापमान का बहुत प्रभाव पड़ता है.

अच्छी फसल के लिए 23-35 डिग्री सेल्सियस तापमान उपयुक्त होता है.

रेतीली दोमट मिट्टी से दोमट व चिकनी दोमट भूमि जिसका पीएच मान 5 से 7 के बीच इसकी खेती के लिए उपयुक्त मानी जाती है.

जलजमाव वाले खेत में चौलाई की खेती नहीं करने की सलाह दी जाती है.

 

इस प्रकार करें खेत की तैयारी

पहली जुताई गहरी करनी चाहिए. उसके बाद 10-15 दिनों में दूसरी जुताई के साथ सड़ी हुई गोबर की खाद 25 से 30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से मिला देने से पैदावार अच्छी मिलती है.

गोबर की सड़ी खाद डालने के बाद पाटा लगाकर खेत को समतल करा दें.

अगर खेत में नमी नहीं है तो बुवाई से दो-तीन दिन पहले हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए.

 

बुवाई के लिए उपयुक्त समय

मैदानी क्षेत्रों में इसे नवंबर मध्य से लेकर मध्य दिसंबर तक बोना चाहिए.

बुवाई के लिए प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 2 से 2.5 किलो ग्राम बीज पर्याप्त होता है.

बीजों को रेत या मिट्टी में मिलाकर 45 सेंटी मीटर पर पंक्ति बनाकर बुवाई करें.

अन्नापूर्णा दुर्गा, सुवर्णआ, पीआरए-1, पीआरए-2 और पीआरए-3 चौलाई की उन्नत किस्में हैं.

 

खाद और उर्वरक की मात्रा

जैसा की हम पहले ही बता चुके हैं कि जुताई के वक्त में खेत में सड़ी गोबर की खाद डालनी चाहिए.

इसके बाद बिजाई के वक्त 30 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 किलोग्राम फॉस्फोरस और 20 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर के हिसाब से देना चाहिए.

प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 20 किलोग्राम सफ्लर भी खेत में डाल सकते हैं.

एक महीने बाद 30 किलोग्राम नाइट्रोजन फसल के लिए लाभदायक साबित होगा.

 

चौलाई का उपयोग

चौलाई का उपयोग मुख्यत: खाद्यान्न, साग व रंगों के लिए किया जाता है.

इसकी कोमल पत्तियां साग बनाने के लिए इस्तेमाल की जाती हैं. इसके दानों से लड्डू बनाए जाते हैं और उपवास के दौरान भी इसका उपयोग किया जाता है.

इसके दानों से निकलने वाले तेल का इस्तेमाल आधुनिक उपकरणों जैसे कंप्युटर के कलपुर्जों के लुब्रिकेंट्स के रूप में भी किया जाता है.

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