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वैज्ञानिकों ने विकसित की 15 तरह की जैविक खाद

 

होगी बंपर पैदावार

 

देश में खाद व उर्वरक की किल्लत के बीच एक सुखद खबर सामने आई है जो किसानों को राहत देने वाली है।

मध्यप्रदेश के जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिकों ने 15 तरह की जैविक खाद विकसित करने में सफलता हासिल की है।

बताया जा रहा है कि इन खादों का उपयोग करके किसान कम लागत पर अधिक पैदावार प्राप्त कर सकते हैं और इसमें कीटों और बीमारियों के लगने का खतरा भी कम होता है।

मीडिया में प्रकाशित खबरों के अनुसार मध्य प्रदेश के सबसे बड़े कृषि विश्वविद्यालय ने जैविक खाद बनाकर किसानों की इस समस्या का समाधान निकाला लिया है।

इन बेहद सस्ते जैविक खादों को अपनाकर किसान पहले साल में ही रासायनिक उर्वरकों में 25 प्रतिशत की कटौती कर 15 से 20 प्रतिशत अधिक उपज प्राप्त कर सकते हैं।

 

विश्वविद्यालय ने बनाए 15 तरह के जैविक खाद 

जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय ने 15 तरह के जैविक खाद को तैयार किया है।

बताया जा रहा है कि इसके प्रयोग से बेहतर फसल की उत्पादन के साथ उनकी गुणवत्ता में भी सुधार आएगा। इन सभी उर्वकों का नाम जवाहर फर्टिलाइजर्स रखा गया है।

बता दें कि इन जैविक खादों में हवा से नाइट्रोजन को अवशोषित करने के साथ पोटाश, फॉस्फोरस, जस्ता, बीज उपचारित, गलाने वाली पत्तियों व गेहूं-धान के अवशेषों के बायोडिग्रेडेबल शामिल हैं।

 

रासायनिक खाद के प्रयोग में आएगी कमी

अगर किसान भाई तीन साल तक इसका इस्तेमाल करते रहे तो चौथे साल में आपको रासायनिक खाद से मुक्ति मिल जाएगी।

पहले वर्ष में 25 प्रतिशत रासायनिक उर्वरकों को कम करके फिर दूसरे वर्ष में 50 प्रतिशत, तीसरे वर्ष में 75 प्रतिशत और चौथे वर्ष में रासायनिक उर्वरकों का उपयोग पूरी तरह से बंद करके इसका उपयोग करेंगे तो जेहरीले उर्वकों से भी निपटारा पा सकेंगे।

 

जैविक खाद के इस्तेमाल से ये होगा फायदा

  • जैविक खाद के इस्तेमाल से फसल उत्पादन में बढ़ोतरी के साथ ही किसानों किसानों को अधिक मुनाफा मिलता है। 
  • किसानों का रायासनिक खाद व उर्वरकों में काफी पैसा खर्च हो जाता है। यदि किसान भाई जैविक खाद का प्रयोग करें तो इस खर्च को कम किया जा सकता है और सस्ते में जैविक खाद का प्रयोग कर उत्पादन और लाभ दोनों को बढ़ाया जा सकता है। 
  • जैविक खेती से प्राप्त उत्पाद की मांग बाजार में बहुत होती है और इसकी कीमत भी अच्छी मिलती है। जैविक उत्पाद को लोग काफी पसंद करते हैं। इसके उत्पाद जैविक होने के कारण बाजार में इसकी कीमत बहुत अधिक होगी जिसे ऊंचे दामों पर बेचा जा सकेगा। 
  • बता दें कि रासायनिक खाद के लगातार प्रयोग से खेत की उर्वरा शक्ति कम होने लगती है जबकि जैविक खाद के इस्तेमाल से भूमि की उर्वराशक्ति बढ़ती है जिससे स्वस्थ फसलोत्पादन होता है। 

 

दो प्रकार से उपलब्ध होगी ये जैविक खाद

  • विश्वविद्यालय की ओर से जो जैविक खाद तैयार की गई है वे दो तरह से किसानों को उपलब्ध होगी। इसमें एक चूर्ण के रूप में तो दूसरा तरल जैविक के रूप में। 
  • पाउडर जैविक खाद का उपयोग किसान 6 महीने की अवधि तक कर सकते हैं। जबकि किसान तरल जैविक खाद का उपयोग एक साल तक किया जा सकता है।

 

किसान भाई ऐसे कर सकते हैं जैविक खाद का इस्तेमाल 

जैविक खाद का प्रयोग कर किसान भाई स्वस्थ उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं। 

जैविक खाद को प्रयोग करते समय किसान भाई 15 ग्राम प्रति किलो की दर से चूर्ण से मध्यम उपचार कर सकते हैं।

इसके अलावा तीन से चार किलोग्राम प्रति एकड़ 50 किलोग्राम गोबर, केंचुआ खाद या नम मिट्टी में मिलाकर खेत में लगा सकते हैं। इसके बाद इसमें हल्की सिंचाई करनी चाहिए।

 

किसान भाई घर पर भी तैयार कर सकते हैं जैविक खाद 

किसान भाई घर पर भी जैविक खाद को बना सकते हैं। जैविक खाद बनाने के लिए 10 किलो गोबर,10 लीटर गोमूत्र, एक किलो गुड़, एक किलो चोकर एक किलो मिट्टी का मिश्रण तैयार करना चाहिए।

इन पांच तत्वों को आपस में मिलाने के लिए हाथ से या किसी लकड़ी के डंडे की मदद लें।

मिश्रण बन जाने के बाद इसमें एक से दो लीटर पानी डाल दें। अब इसे 20 दिनों तक ढक कर रख दें।

ध्यान रहे कि इस ड्रम पर धूप न पड़े। अच्छी खाद पाने के लिए इस घोल को प्रतिदिन एक बार अवश्य मिलाएं।

20 दिन बाद ये खाद बन कर तैयार हो जाएगी। यह खाद सूक्ष्म जीवाणु से भरपूर रहेगी खेत की मिट्टी की सेहत के लिये अच्छी रहेगी।

 

क्या होती है जैविक खेती

ऐसी खेती जिसमें दीर्घकालीन व स्थिर उपज प्राप्त करने के लिए कारखानों में निर्मित रसायनिक उर्वरकों, कीटनाशियों व खरपतवारनाशियों तथा वृद्धि नियंत्रक का प्रयोग न करते हुए जीवांशयुक्त खादों का प्रयोग किया जाता है तथा मृदा एवं पर्यावरण प्रदूषण पर नियंत्रण किया जा सकता है।

ऐसी खेती जैविक खेती कहलाती है। इसमें जैविक खाद बनाने में पशु-पक्षियों के गोबर, मलमूत्र, वनस्पतियों का कचरा, गोबर, केचुआं आदि का प्रयोग किया जाता है। 

 

भारत में जैविक खेती की आवश्यकता क्यों?

जैसा कि भारत वर्ष में ग्रामीण अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार कृषि है और कृषकों की मुख्य आय का साधन खेती है।

हरित क्रांति के समय से बढ़ती हुई जनसंख्या को देखते हुए एवं आय की दृष्टि से उत्पादन बढ़ाना आवश्यक है अधिक उत्पादन के लिए खेती में अधिक मात्रा में रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशक का उपयोग करना पड़ता है।

जिससे सामान्य व छोटे कृषक के पास कम जोत में अत्यधिक लागत लग रही है और जल, भूमि, वायु और वातावरण भी प्रदूषित हो रहा है साथ ही खाद्य पदार्थ भी जहरीले हो रहे हैं।

इसलिए इस प्रकार की सभी समस्याओं से निपटने के लिये गत वर्षों से निरंतर टिकाऊ खेती के सिद्धांत पर खेती करने की सिफारिश की गई, जिसे प्रदेश के कृषि विभाग की ओर से इस विशेष प्रकार की खेती को अपनाने के लिए बढ़ावा दिया जा रहा है और इसका प्रचार-प्रसार भी किया जा रहा है।

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