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वैज्ञानिकों ने बताए गेहूं का अधिक उत्पादन प्राप्त करने के तरीके

 

गेहूं के बेहतर उत्पादन की तकनीक और सावधानियां

 

इस समय रबी फसलों की बुवाई का समय चल रहा है और किसान गेहूं सहित अन्य फसलों की बुवाई में लगे हुए है। देश में गेहूं की अगेती किस्म की बुवाई का कार्य पूरा हो चुकी है।

जबकि जो किसान गेहूं की अगेती बुवाई नहीं कर पाएं हैं वे अब इसकी पछेती किस्मों की बुवाई कर सकते हैं।

हालांकि गेहूं की अगेती बुवाई के मुकाबले गेहूं की पछेती बुवाई में उत्पादन थोड़ा कम मिलता है लेकिन उन्नत तकनीक का इस्तेमाल किया जाए तो गेहूं की पछेती किस्मों से भी अच्छा उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।

आइए जानतें हैं इस विषय पर वैज्ञानिकों के बताएं तरीके और उनके द्वारा दी गई उपयोगी जानकारी जिसका इस्तेमाल कर किसान भाई गेहूं का अधिक उपादन प्राप्त कर सकते हैं।

 

गेहूं की देरी से बुवाई के लिए उन्नत किस्में

गेहूं की सिंचित अवस्था देरी से बुवाई के लिए एच डी- 2985, डब्ल्यू आर- 544, राज- 3765, पी बी डब्ल्यू- 373, डी बी डब्ल्यू- 16, डब्ल्यू एच- 1021, पी बी डब्ल्यू- 590 और यू पी- 2425 प्रमुख हैं।

इसी के साथ देरी से बुवाई के लिए एच.डी. 2932, पूसा 111, डी.एल. 788-2 विदिशा, पूसा अहिल्या, एचआई 1634, जे.डब्ल्यू. 1202, जे.डब्ल्यू. 1203, एम.पी. 3336, राज. 4238 किस्में भी अच्छी मानी जाती हैं।

किसान भाई पछेती गेहूंं की बुवाई 31 दिसंबर तक अवश्य कर दें।

 

पछेती गेहूं की बुवाई के लिए बीज मात्र और दूरी

उपयोग की जाने वाली किस्म के साथ बीज दर भिन्न होती है। जो की बीज के आकार, अंकुरण प्रतिशत, जुताई, बुवाई का समय, मिट्टी में नमी की मात्रा और बुवाई की विधि पर भी निर्भर करता है।

आमतौर पर, बीज दर 40 किलो प्रति एकड़ पर्याप्त है। सामान्य बुवाई के लिए देर से बोई जाने वाली परिस्थितियों में सोनालिका जैसी मोटे अनाज वाली किस्मों के लिए, बीज की दर बढ़ाकर 50 किलो प्रति एकड़ की जाए।

यदि डिबलर द्वारा गेहूं की बुवाई करनी हो तो बीज दर 10 से 12 किलो प्रति एकड़ पर्याप्त है।

सामान्य बोई गई फसल के लिए दो पंक्तियों के बीच 20 से 22.5 सेमी की दूरी रखी जाती है। बुवाई में देरी होने पर 15 से 18 सेमी की दूरी रखें।

 

उर्वरक की मात्रा का ऐसे करें निर्धारण

गेहूं के लिए सामान्यत: नत्रजन, स्फुर व पोटाश-4:2:1 के अनुपात में दें।

असिंचित खेती में 40:20:10, सीमित सिंचाई में 60:30:15 या 80:40:20, सिंचित खेती में 120:60:30 तथा देर से बुवाई में 100:50:25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के अनुपात में उर्वरक दें।

सिंचित खेती की मालवी किस्मों को नत्रजन, स्फुर व पोटाश 140:70:35 किलो ग्राम प्रति हेक्टेयर दें।

देरी से बुवाई में नत्रजन की आधी मात्रा तथा स्फुर व पोटाश की पूर्ण मात्रा बुवाई से पहले मिट्टी में 3-4 इंच ओरना चाहिए।

शेष नत्रजन पहली सिंचाई के साथ दें। खेत के उतने ही हिस्से में यूरिया का भुरकाव करें, जितने में उसी दिन सिंचाई दे सकें।

जहां तक संभव हो यूरिया बराबर से फैलायें। यदि खेत पूर्ण समतल नहीं है तो यूरिया का भुरकाव सिंचाई के बाद, जब खेत में पैर धंसने बंद हो जायें तब करें।

 

निर्धारित समय अंतराल और निश्चित मात्रा में करें सिंचाई

गेहूं की अगेती फसल की सिंचाई समय पर, निर्धारित मात्रा में, तथा अनुशंसित अंतराल पर ही करें।

बुवाई के बाद खेत में दोनों ओर से आड़ी तथा खड़ी नालियां प्रत्येक 15-20 मीटर पर बनायें तथा बुवाई के तुरन्त बाद इन्हीं नालियों द्वारा बारी- बारी से क्यारियों में सिंचाई करें।

गेहूं की अगेती खेती में मध्य क्षेत्र की काली मिट्टी तथा 3 सिंचाई की खेती में पहली सिंचाई बुवाई के तुरंत बाद, दूसरी 35-45 दिन तथा तीसरी सिंचाई 70-80 दिन की अवस्था में करना पर्याप्त है।

पूर्ण सिंचित समय से बुवाई में 20-20 दिन के अन्तराल पर 4 सिंचाई करें। देरी से बुवाई में 17-18 दिन के अन्तराल पर 4 सिंचाई करें।

बालियां निकलते समय फव्वारा विधि से सिंचाई न करें अन्यथा फूल खिर जाते हैं, झुलसा रोग हो सकता है। दानों का मुंह काला पड़ जाता है व करनाल बंट तथा कंडुवा व्याधि के प्रकोप का डर रहता है।

 

पाले से बचाव के लिए ये करें उपाय

यदि क्षेत्र में पाले की संभावना हो तो इससे बचाव के लिए फसलों में स्प्रिंकलर के माध्यम से हल्की सिंचाई करें, थायो यूरिया की 500 ग्राम मात्रा का 1000 लीटर पानी में घोल बनाकर छिडक़ाव करें।

अथवा 8 से 10 किलोग्राम सल्फर पाउडर प्रति एकड़ का भुरकाव करें अथवा घुलनशील सल्फर 3 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिडक़ाव करें अथवा 0.1 प्रतिशत व्यापारिक सल्फ्यूरिक अम्ल गंधक का अम्ल का छिडक़ाव करना चाहिए।

 

खेत में पनपने न दें खरपतवार

गेहूं फसल में मुख्यत: दो तरह के खरपतवार होते हैं- चौड़ी पत्ती वाले- बथुआ, सेंजी, दूधी, कासनी, जगंली पालक, जगंली मटर, कृष्ण नील, हिरनखुरी तथा संकरी पत्ती वाले-जंगली जई, गेहुँसा या गेहूं का मामा आदि।

किसान भाई अगर खरपतवार नाशक का उपयोग नहीं करना चाहते हैं तो डोरा, कुल्पा व हाथ से निंदाई-गुड़ाई 40 दिन से पहले दो बार करके खरपतवार खेत से निकाल सकते हैं।

गेहूं  की फसल को प्रथम 35-40 दिन तक आवश्यक रूप से खरपतवार हटाएं।

 

यदि रासायनिक तरीके से खरपतवार नष्ट करना चाहते हैं तो चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार के लिए 2,4-डी की 0.65 किलोग्राम या मेटसल्फ्यूरॉन मिथाइल की 4 ग्राम/हे. की दर से बुवाई के 30-35 दिन बाद छिडक़ाव करें।

वहीं सकरी पत्ती वाले खरपतवार के लिए क्लौडिनेफॉप प्रौपरजिल 60 ग्राम/हेक्टेयर की दर से 25-35 दिन की फसल में जब खरपतवार 2-4 पत्ती वाले हो छिडक़ाव करें।

दोनों तरह चौड़ी पत्तियाँ व संकरी पत्तियों के खरपतवार के लिए खरपतवार नाशक मेटसल्फ्यूरॉन मिथाइल की 4 ग्राम तथा क्लौडिनेफॉप प्रौपरजिल 60 ग्राम/हेक्टेयर की दर से मिलाकर टेंक मिक्स 25-35 दिन की फसल में छिडक़ाव करने से दोनों तरह के खरपतवार पर नियंत्रण किया जा सकता है।

 

कीटों व रोगों से ऐसे रखें गेहूं की फसल को सुरक्षित

इन दिनों जड़ माहू कीटों रूट एफिड का प्रकोप देखा जा सकता है। यह कीट गेहूं के पौध को जड़ से रस चूसकर पौधों को सुखा देते हैं।

जड़ माहू के नियंत्रण के लिए बीज उपचार गाऊचे रसायन से 3 ग्राम प्रति किलो ग्राम बीज की दर से उपचारित करें अथवा इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल की 250 मिली या थाइमौक्सेम की 200 ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से 300-400 लीटर पानी में घोल बनाकर छिडक़ें।

माहू का प्रकोप गेहूं फसल में ऊपरी भाग तना व पत्तों पर होने की दशा में इमिडाक्लोप्रिड 250 मिली ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से पानी मे घोल बनाकर छिडक़ाव करें।

खेेत में गेहूं के पौधें के सूखने अथवा पीले पडऩे पर जो कि किसी कीट, बीमारी अथवा पोषक तत्व की कमी से हो सकता है, तुरंत विशेषज्ञ की सलाह लेकर शीघ्र उपचार करें।

source : tractorjunction

 

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