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गेहूं की इन 6 पछेती क़िस्मों की करें बुवाई

 

मिलेगी अधिक उपज

 

अगर इस वक़्त किसानों और उनसे जुड़ी बातें पर ध्यान दें, तो इस वक़्त उसकी व्यस्तता सबसे ज्यादा होती है.

आपको पता होगा अभी रबी सीजन का मौसम चल रहा है. ऐसे में किसान आमतौर पर गेहूं और मक्के की खेती करना ज्यादा पसंद करते हैं.

पारम्परिक तरीकों से की जा रही फसलों की खेती के तरफ अभी भी अधिकतर किसानों का झुकाव है, और इसका मुख्य कारण इसकी बढ़ती मांग और और उपज है.

पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश के अलावा, कई ऐसे राज्य हैं जो गेहूं के मुख्य उत्पादक के तौर पर जाने जाते हैं.

 

ऐसे में अधिकतर किसानों की यही चाह रहती है की वो भी गेहूं की खेती कर अधिक से अधिक मुनाफा कमा सकें.

तो आइये आज हम आपको बताएंगे कैसे गेहूं की उन्नत खेती कर सभी किसान भाई मुनाफा कमा सकते हैं.

साथ ही हम आपको पछेती किस्मों की बुवाई कब और कैसे करें यह भी बताएंगे.

 

गेहूँ की खेती के लिए ना ज्यादा ठंढी और ना ज़्यादा गर्म यानि टेम्पेरटे जलवायु की आवश्यकता होती है.

इसलिए इसकी बुवाई के लिए अक्टूबर से लेकर जनवरी तक का महीना चुना जाता है.

इसकी खेती के लिए अनुकूल तापमान बुवाई के समय 20-25 डिग्री सेंटीग्रेट उपयुक्त माना जाता है, गेहूँ की खेती मुख्यत सिंचाई पर आधारित होती है.

गेहूं के लिए जमीन तैयार करने से लेकर फसल पकने तक पानी का अहम् योगदान रहता है.

किसानों को यह ध्यान रखना होता है की खेतों में पानी की कोई कमी ना हो.

पानी खेतों में तापमान को फसल के अनुकूल रखने में मदद करता है. साधनों की उपलब्धता के आधार पर हर तरह की भूमि में गेहूँ की खेती की जा सकती है.

हालाँकि, अब हमारे कृषि वैज्ञानिकों की मदद से कई ऐसे किस्मों को भी विकसित किया जा चुका है, जिसे पानी की अधिक आवश्यकता नहीं होती, और पैदावार भी अच्छी होती है.

 

गेहूं की पछेती किस्में

गेहूं की पछेती किस्म और उसकी बुवाई के बारे में बात करें, तो कुछ चयनित किस्मे हैं जिसकी बुवाई कर किसानों को अधिक लाभ मिल सकता है.

 

जे.डब्ल्यू 1202

गेहूं की यह पछेती किस्म हैं. इस किस्म से प्रति हेक्टेयर 35-45 क्विंटल उत्पादन लिया जा सकता है.

डॉ. शर्मा का कहना है इस किस्म कई प्रगतिशील किसान 60 से 70 क्विंटल तक उत्पादन ले रहे हैं.

यह एक प्रमुख उन्नत किस्म है. मध्य प्रदेश कृषि विभाग की वेबसाइट के मुताबिक, गेहूं की यह किस्म मध्य प्रदेश के विंध्य पठार भाग (रायसेन, विदिशा, सागर, गुना), नर्मदा घाटी (जबलपुर, नरसिंहपुर, होशंगाबाद, हरदा), बैनगंगा घाटी (बालाघाट, सिवनी), हवेली क्षेत्र (रीवा, जबलपुर, नरसिंहपुर), सतपुड़ा पठार (छिंदवाड़ा, पठार), निमाड़ अंचल (खंडवा, खरगोन, धार, झाबुआ) के लिए उपयुक्त है.

 

जे.डब्लयू 1203

यह किस्म मालवा अंचल (रतलाम, मंदसौर, इंदौर, उज्जैन, शाजापुर, राजगढ़, सीहोर, धार, देवास, गुना (दक्षिण भाग), विंध्य पठार (रायसेन, विदिशा, सागर, गुना), नर्मदा घाटी (जबलपुर, नरसिंहपुर, होशंगाबाद, हरदा), हवेली क्षेत्र (रीवा, जबलपुर, नरसिंहपुर), सतपुड़ा पठार (छिंदवाड़ा, पठार), गिर्द क्षेत्र (ग्वालियर, भिण्ड, मुरैना, दतिया) के लिए उपयुक्त हैं. इससे भी प्रति हेक्टेयर 35-45 क्विंटल उत्पादन लिया जा सकता है.

 

एमपी 3336

यह भी गेहूं की पछेती उन्नत किस्म है. अच्छे उत्पादन के लिए 4-5 सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है. प्रति हेक्टेयर 35-45 क्विंटल उत्पादन देने में सक्षम हैं.

 

राज- 4238

यह भी गेहूं की पछेती किस्म है. जिससे प्रति हेक्टेयर 34-45 क्विंटल उत्पादन लिया जा सकता है.

 

एचआई 1633 या पूसा वाणी

गेहूं की इस किस्म को भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, इंदौर ने ईजाद किया है.

यह महाराष्ट्र और कर्नाटक राज्य के लिए अनुशंसित है. प्रति हेक्टेयर 35-45 क्विंटल उत्पादन लिया जा सकता है.

इस किस्म की बुवाई दिसंबर-जनवरी के मध्य करना चाहिए.

एचआई 1634 या पूसा अहिल्या

यह भी गेहूं की पछेती किस्म है. इसे भी भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, इंदौर ने ईजाद किया है.

यह किस्म मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, राजस्थान (कोटा, उदयपुर क्षेत्र) के लिए अनुशंसित है.

अच्छे उत्पादन के लिए 20 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करना चाहिए.

source

 

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