आपदा में अवसर, रूस-यूक्रेन जंग में फंसे
भारत भले ही गेहूं के उत्पादन के मामले में दूसरे स्थान पर हो, लेकिन निर्यात के मामले में बहुत पीछे है.
अभी गेहूं के ग्लोबल एक्सपोर्ट में भारत की हिस्सेदारी 1 फीसदी के आस-पास है. रूस-यूक्रेन सबसे बड़े निर्यातकों में से हैं.
रूस और यूक्रेन के बीच करीब 1 महीने से जारी लड़ाई ने दुनिया भर में कई चीजों को बदल दिया है.
जंग का नतीजा भले ही अभी तक साफ नहीं हुआ हो, लेकिन इकोनॉमी को कई तरीके से नुकसान हो रहा है.
जहां एक ओर क्रूड ऑयल में उबाल कायम है, दूसरी ओर गेहूं समेत कई जरूरी कमॉडिटीज की कमी का संकट सामने आ चुका है.
हालांकि इस जंग ने भारत के लिए आपदा में अवसर खोजने का मौका दिया है.
ग्लोबल मार्केट में गेहूं का भाव बढ़ने के बाद भारत ने निर्यात बढ़ाना शुरू कर दिया है.
अगर गेहूं व अन्य एग्री प्रोडक्ट आगे भी महंगे बने रहे तो इससे किसानों की आमदनी बढ़ाने के सरकार के प्रयासों को मदद मिल सकती है.
भारत दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक, पर निर्यात मामूली
ग्लोबल मार्केट को देखें तो भारत भले ही गेहूं के सबसे बड़े उत्पादकों में से एक हो, लेकिन निर्यात के मामले में भारत अभी तक बहुत पीछे रहा है.
यूनाइटेड नेशन के फूड एंड एग्रीकल्चरल ऑर्गेनाइजेशन के अनुसार, रूस और यूक्रेन मिलकर करीब एक चौथाई गेहूं का निर्यात करते हैं.
गेहूं के ग्लोबल एक्सपोर्ट में भारत का हिस्सा महज 1 फीसदी के आस-पास है.
उत्पादन के हिसाब से भारत दूसरे स्थान पर है, जबकि चीन गेहूं का सबसे ज्यादा उत्पादन करता है.
रूस दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक देश है, जबकि यूक्रेन सातवें स्थान पर है.
रूस-यूक्रेन के गेहूं पर निर्भर हैं ये देश
रूस और यूक्रेन की लड़ाई शुरू होने के बाद भारत के सामने मौका है कि इन 2 देशों के गेहूं पर निर्भर बाजारों में हिस्सा बढ़ाए. सरकार इस दिशा में प्रयास भी शुरू कर चुकी है.
मिस्र, चीन, तुर्की, सूडान, बोस्निया, नाईजीरिया, ओमान, दक्षिण अफ्रीका और ईरान जैसे देशों के साथ सरकार प्रक्रिया आगे बढ़ा चुकी है.
ये देश पारंपरिक तौर पर गेहूं के मामले में रूस-यूक्रेन पर निर्भर रहते आए हैं.
फूड सेक्रेटरी सुधांशु पांडेय के एक हालिया बयान से भी इस बात के साफ संकेत मिले थे कि भारत इस मौके को भुनाने की तैयारी में है.
टूटने वाला है भारत के गेहूं निर्यात का रिकॉर्ड
भारत के गेहूं एक्सपोर्ट की बात करें तो इसी फाइनेंशियल ईयर में नया रिकॉर्ड बनना तय लग रहा है.
अप्रैल 2021 से फरवरी 2022 के दौरान भारत 6.2 मिलियन टन गेहूं का निर्यात कर चुका है.
इसके बाद मौजूदा फाइनेंशियल ईयर में मार्च का अहम महीना बाकी है, जब जंग शुरू होने के बाद गेहूं की मांग बढ़ी है.
ऐसे में लग रहा है कि भारत FY22 में गेहूं के निर्यात के मामले में 7 मिलियन टन का लेवल पार कर लेगा.
अगर ऐसा होता है तो 2012-13 का रिकॉर्ड टूट जाएगा, जब 6.5 मिलियन टन गेहूं का निर्यात किया था.
फूड सेक्रेटरी सुधांशु पांडेय ने हाल ही में बताया था कि अगले साल यानी 2022-23 में सरकार करीब 10 मिलियन टन गेहूं का निर्यात करना चाह रही है.
इस साल बंपर फसल, किसानों को मिलेगा फायदा
भारत ने हाल ही में यमन, अफगानिस्तान, कतर और इंडोनेशिया जैसे नए बाजारों को गेहूं का एक्सपोर्ट शुरू किया है.
अभी भारतीय गेहूं के सबसे बड़े खरीदारों में बांग्लादेश का नाम सबसे ऊपर आता है, जिसने इस फाइनेंशियल ईयर के पहले 10 महीनों में कुल निर्यात का 60 फीसदी हिस्सा खरीदा है.
इसके बाद श्रीलंका और संयुक्त अरब अमीरात का स्थान है. बढ़ी मांग का असर बाजार में भी दिखने लगा है.
गेहूं के लिए अभी एमएसपी भले ही 2,015 रुपये प्रति क्विंटल हो, थोक बाजार में इसकी कीमतें फरवरी में ही 2,400-2,500 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर को पार कर गई थीं.
इससे किसानों को आने वाले समय में फायदा मिल सकता है. सरकारी को इस रबी सीजन में गेहूं की बंपर फसल का अनुमान है.
अनुमान के हिसाब से इस सीजन में भारत का गेहूं उत्पादन 111 मिलियन टन पर पहुंच सकता है.
source : aajtak
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