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मांग बढ़ने के बीच घटती जा रही सरसों की उपलब्धता

 

नई पैदावार आने में अभी 4 महीने का वक्त

 

देश में लगभग 5,000 सरसों की छोटी मिलें हैं जो खुदरा मांग को पूरा करती हैं.

जाड़े में सरसों की मांग बढ़नी शुरू हो गई है और अब इन छोटे तेल मिलों की दैनिक मांग लगभग 60 हजार बोरी से बढ़कर 80,000 बोरी की हो गई है.

मांग बढ़ने के साथ साथ सरसों की उपलब्धता निरंतर कम होती जा रही है.

 

विदेशी बाजारों में कमजोर रुख से दिल्ली मंडी में गुरुवार को सीपीओ, पामोलीन और सोयाबीन में गिरावट का रुख रहा.

दूसरी ओर देश में खुदरा मांग को पूरा करने के लिए छोटी पेराई मिलों की मांग बढ़ने से सरसों तेल तिलहन के भाव में सुधार देखने को मिला.

बाकी तेल-तिलहनों के भाव पूर्वस्तर पर बने रहे. सूत्रों ने कहा कि मलेशिया एक्सचेंज में 0.8 प्रतिशत की गिरावट है जबकि फिलहाल शिकागो एक्सचेंज सामान्य रहा.

उन्होंने कहा कि विदेशी बाजारों में गिरावट के बीच स्थानीय तेल-तिलहन कीमतों में भी गिरावट आई.

 

बाजार के जानकारों ने कहा कि इंडोनेशिया ने सीपीओ और पामोलीन पर निर्यात कर में 34 डॉलर प्रति टन की वृद्धि कर दी है और रुपए में यह वृद्धि 255 रुपए प्रति क्विन्टल की है.

सूत्रों ने कहा कि 29 अक्टूबर को आयात शुल्क मूल्य का निर्धारण किया जाएगा और इस शुल्क को खाद्य तेलों के बाजार भाव के हिसाब से निर्धारित किया जाना चाहिए, जिससे आयातकों को अपने सौदों को लेकर निश्चिन्तता और आसानी रहती है.

इससे तेल की उपलब्धता बढ़ेगी. आयात शुल्क मूल्य को बाजार भाव के अनुरूप रखने की इसलिए भी आवश्यकता है क्योंकि शुल्क दरें पहले ही काफी कम हैं.

 

सरसों की नई पैदावार आने में 4 महीने से अधिक का वक्त

सूत्रों ने कहा कि देश में लगभग 5,000 सरसों की छोटी मिलें हैं जो खुदरा मांग को पूरा करती हैं.

जाड़े में सरसों की मांग बढ़नी शुरू हो गई है और अब इन छोटे तेल मिलों की दैनिक मांग लगभग 60 हजार बोरी से बढ़कर 80,000 बोरी की हो गई है.

मांग बढ़ने के साथ साथ सरसों की उपलब्धता निरंतर कम होती जा रही है.

यह उपलब्धता दीपावाली के बाद और कम हो जाएगी. सरसों का जो भी थोड़ा बहुत स्टॉक है वह बड़े किसानों के पास ही रह गया है.

सरसों की अगली फसल में लगभग साढ़े चार महीने का समय है क्योंकि बिजाई देर से हुई है.

 

उन्होंने कहा कि सरकार को तेल कीमतों में गिरावट का लाभ उपभोक्ताओं तक पहुंचाने की व्यवस्था करनी चाहिए.

सूत्रों ने कहा कि सोयाबीन की नई फसल की आवक के समय वायदा कारोबार में भाव कम चल रहा है.

ऐसा जानबूझकर इसलिए किया जाता है ताकि किसानों को सस्ते में अपनी उपज बेचने के लिए मजबूर किया जा सके.

सूत्रों ने कहा कि सरकार को सरसों की ही तरह सोयाबीन के वायदा कारोबार पर रोक लगाना चाहिए ताकि सट्टेबाजों पर अंकुश लगाया जा सके.

 

‘देसी तेल पर स्टॉक लिमिट लागू करने का कोई औचित्य नहीं’

उन्होंने कहा कि किसी भी राज्य को मूंगफली और सोयाबीन पर ‘स्टॉक लिमिट’ (स्टॉक रखने की सीमा) नहीं लगाना चाहिए.

महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश ने किसानों के हित के लिए पहले से ही इसे लागू करने से मना कर दिया है.

सूत्रों ने कहा कि देसी तेल पर ‘स्टॉक लिमिट’ लगाने का कोई औचित्य भी नहीं है क्योंकि गरीब उपभोक्ता सोयाबीन और पामोलीन जैसे सस्ते आयातित तेल अपना चुके हैं और इन तेलों पर ‘स्टॉक लिमिट’ लागू नहीं है.

सरकार को इन आयातित तेलों के भाव की निगरानी रखनी होगी कि ये उपभोक्ताओं को किस दर पर बेचा जा रहा है और उन्हें गिरावट का लाभ मिल रहा है या नहीं.

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