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इंजीनियरिंग की नौकरी छोड़ युवक बना किसान

 

अपने मॉडल से किसानों की आय दोगुनी करने में कर रहा मदद

 

राकेश और अन्य किसान एक दूसरे के साथ भूमि, संसाधन, ज्ञान, उपकरण, श्रम और मशीनरी साझा करते हैं, जिसके बदले अपनी जमीन वाले किसानों को लाभ प्रतिशत प्राप्त होता है जबकि भूमिहीनों को हर महीने 6000 रुपये का वेतन मिलता है.

 

कृषि आज फायदे का बिजनेस बन गया है. यही कारण है कि आज यह क्षेत्र युवाओं को काफी आकर्षित कर रहा है.

ऐसे ही एक युवा हैं राकेश महंती भी एक ऐसे ही युवा है जिन्होंने इंजीनियरिंग की नौकरी छोड़ी और खेती में आ गए.

राकेश मंहती ने खेती करने के लिए अपनी मोटी तनख्वाह वाली नौकरी छोड़ दी और जमशेदपुरे पटमदा प्रखंड में खेती सामुदायिक खेती कर रहे हैं.

अपने साथ साथ राकेश मोहंती प्रखंड के 80 किसानों की आय को भी दोगुनी करने में मदद कर रहे हैं.

 

80 किसानों को कर रहें है मदद

राकेश मंहती कहते हैं अगर किसी चीज को बेहतर बनाना है तो उसे मॉडल बनाना होगा.

उसका एक उदाहरण बनाना होगा तब ही लोग अपने आप उसका अनुसरन करेंगे.

इसलिए, उन्होंने पहले से ही अपने साथ काम कर रहे 5 किसानों के समर्थन से एक छोटे से जमीन के टुकड़े पर एक मॉडल-फार्म तैयार किया और फिर चीजें बेहतर हुईं और दूसरे किसानों ने भी उसे अपनाना शुरू कर दिया.

अब 80 से अधिक किसान उससे जुड़े हुए हैं और इससे अच्छा लाभ कमा रहे हैं.

 

भूमिहीनों को देते है वेतन

इससे पहले 2017 में, महंती ने अपना सामाजिक उद्यम, ‘ब्रुक एन बीस’ शुरू किया, जो मुख्य रूप से सामुदायिक खेती की अवधारणा पर काम करता है और स्थानीय किसानों के साथ मिलकर जैविक फसलें उगाता है.

राकेश और अन्य किसान एक दूसरे के साथ भूमि, संसाधन, ज्ञान, उपकरण, श्रम और मशीनरी साझा करते हैं, जिसके बदले अपनी जमीन वाले किसानों को लाभ प्रतिशत प्राप्त होता है जबकि भूमिहीनों को हर महीने 6000 रुपये का वेतन मिलता है.

इसके अलावा, किसानों को अपने उत्पादों को बेचने या उन्हें बाजार तक पहुंचाने के लिए पैसे खर्च करने की चिंता करने की ज़रूरत नहीं है.

 

ग्रामीण विकास के क्षेत्र मे थी कार्य करने की इच्छा

न्यू इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, एक टेक्नोक्रेट से किसान तक के अपने सफर को याद करते हुए महंती ने कहा कि 2012 में बीआईटी बैंगलोर से बी.टेक पूरा करने के बाद, उन्हें टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (टीसीएस) में प्लेसमेंट मिला.

लेकिन, समय के साथ उन्होंने महसूस किया कि वह 9-5 की नौकरी के लिए नहीं हैं और अपने गांव में अपने ही लोगों के लिए ग्रामीण विकास के क्षेत्र में कुछ करना चाहते हैं.

चार साल बाद, उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी और एक्सएलआरआई, जमशेदपुर के साथ प्रबंधन कार्यक्रम में शामिल हो गए.

चूंकि उनका खेती में नये प्रयोग करने की ओर अत्यधिक झुकाव था, इसलिए वे जमशेदपुर में अपने एमबीए प्रोग्राम का पूरा करते हुए और अपने भविष्य की योजना बनाते हुए नियमित रूप से अपने खेतों का दौरा करते रहे.

 

‘फार्म पार्टिसिपेशन प्रोजेक्ट’ की हुई शुरुआत

आगे उन्होंने बताया कि एमबीए की पढ़ाई के दौरान खेती में उनकी इच्छा जगी और खेती को उद्योग में बदलने के बारे में सोचा.

इसके बाद उन्होंने इस विषय पर अच्छी तरह से रिसर्च किया. खेती की समस्याओं और समाधान को लेकर पूरा खाका तैयार किया.

इसके बाद बाजार की कमी को देखते हुए ‘फार्म पार्टिसिपेशन प्रोजेक्ट’ नामक एक और पहल शुरू की, जिसके तहत शहरी क्षेत्रों के लोगों के लिए खेत के खेतों में कार्यशालाओं का आयोजन किया गया,.

यह सिर्फ शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के बीच की खाई को पाटने के लिए था ताकि वे एक-दूसरे के बारे में जान सकें.

इस बीच, ‘किसान हाट’ भी शुरू किया गया था, जिसके तहत होजिंग सोसायटियों में स्टॉल लगाए गए थे ताकि उपभोक्ताओं को उनके जैविक उत्पाद उनके दरवाजे पर उपलब्ध कराए जा सकें और उनमें उपभोग करने की आदत पैदा की जा सके.

 

देशभर के 200 किसान जुड़ चुके हैं

खेती करने के अलावा, वे लंबी अवधि की योजना के रूप में फल देने वाले पेड़, गैर-लकड़ी वन उपज, लकड़ी, औषधीय पौधों के पौधे भी लगाते हैं जो भूमि की पारिस्थितिक बहाली में भी मदद करेंगे.

महंती ने कहा, “अब तक, पूरे देश में लगभग 200 किसान मुझसे जुड़े हुए हैं, जबकि पटमदा ब्लॉक में लगभग 80 किसान मुझसे जुड़े हुए हैं.

मैं पूरे भारत के किसानों से जब भी आवश्यकता होती है, उन्हें परामर्श भी प्रदान करता हूं.

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