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केरल से ऑस्ट्रेलिया पहुंचा भारत के किसानों का कटहल

 

आप भी कर सकते हैं लाखों में कमाई

 

एपीडा ने ऑस्ट्रेलिया के लिए केरल के कटहल, पैशन फ्रूट तथा जायफल से बने मूल्य वर्धित उत्पादों की पहली निर्यात खेप को झंडी दिखाई.

 

कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) ने केरल के त्रिशूर के किसानों से प्राप्त कटहल, पैशन फ्रूट (सलीबी फल) तथा जायफल से बने मूल्य वर्धित तथा पोषण समृद्ध उत्पादों की पहली निर्यात खेप को ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न के लिए झंडी दिखाई. 

इन उत्पादों की निधानी आयु (शेल्फ लाइफ) एक वर्ष से अधिक की है.

एपीडा 2021-22 तक 400 बिलियन डॉलर के वस्तु निर्यात को अर्जित करने के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के लक्ष्य के हिस्से के रूप में मूल्य वर्धित तथा स्वास्थ्य उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा दे रहा है.

 

क्या है सरकार का प्लान

फास्ट फूड के वर्तमान समय में, उपभोक्ताओं की वरीयता अब स्वास्थ्य फूड की तरफ बदलने लगी है.

कटहल, पैशन फ्रूट आदि जैसे स्वस्थ विकल्पों से तैयार ग्लूटेन मुक्त उत्पाद फास्ट फूड के उपभोग के मुकाबले व्यवहार्य विकल्प उपलब्ध करा रहे हैं.

मूल रूप से पश्चिमी घाटों में पाए जाने वाले कटहल को मार्च, 2018 में केरल का राज्य फल घोषित किया गया था.

पेड़ से पैदा होने वाले इस सबसे बड़े फल में फाइबर, प्रोटीन, विटामिन तथा खनिज अवयवों की प्रचुरता होती है.

 

यह उष्णकटिबंधीय फल अपने प्रोटीन कंटेट के कारण शाकाहारी लोगों में मांस के विकल्प के रूप में लोकप्रिय है.

फल, बीज तथा गुदे के उपयोग के अतिरिक्त कटहल के पत्ते, छाल, पुष्पक्रम तथा लैटेक्स का उपयोग पारंपरिक दवाओं में भी किया जाता है.

फल के स्वास्थ्य तथा पोषण संबंधी गुणों के बारे में बढ़ती जागरूकता तथा देश भर में कटहल किसानों तथा उद्यमियों के सतत प्रयासों के कारण ऐसा अनुमान है कि आगे आने वाले वर्षों में कटहल निश्चित रूप से सबसे अधिक मांग वाला फल बन जाएगा.

कटहल के प्रमुख निर्यात गंतव्यों में सिंगापुर, नेपाल, कतर, जर्मनी आदि हैं.

 

पैशन फ्रूट एक पौष्टिक उष्णकटिबंधीय फल होता है जो एंटीऑक्सीडेंट, विटामिन तथा फाइबर से भरपूर होता है.

यह एक लाभदायक फल है जिसमें त्वचा, दृष्टि तथा प्रतिरक्षण प्रणाली के लिए महत्वपूर्ण स्वास्थ्यवर्धक पोषण गुण होते हैं.

इन फलों में गुणों की प्रचुरता, व्यापक बाजार क्षमता तथा असीमित संख्या में लाभ की उपलब्धता के कारण, इसके नवोन्मेषी उत्पादों के निर्यात को विस्तारित करने की विशाल अवसर हैं.

 

कटहल की खेती से लाखों कमाने का मौका

कटहल की खेती किसी भी प्रकार की मिट्टी में हो जाती है, लेकिन फिर भी इसकी बागवानी के लिए गहरी दोमट और बलुई दोमट मिट्टी उपयुक्त है.

इसकी खेती के लिए पानी की ज्यादा जरुरत होती है.  बीज से पौधे को उगाने के करीब 4 से 5 साल बाद फल लगने लगते हैं.

इसके लिए बीजों को कटहल से निकालते ही मिट्टी में उगा देना चाहिए. इसकी पौध बनाने के लिए दो विधि का उपयोग होता है.

बाज़ार में कटहल की अच्छी कीमत होती है.

 

अगर एक हेक्टेयर में करीब 150 से ज्यादा पौधे लगाए हैं, तो साल में 3 से 4 लाख तक की पैदावार हो सकती है.

कटहल का पौधा 3 से 4 साल में पैदावार देने लगता है. इसकी पैदावार अलग-अलग किस्मों के आधार पर होती है.

उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले में कटहल की खेती करने वाले अरुण सिंह बताते हैं कि जब उन्होंने इसकी खेती करनी शुरू की तो उनका बहुत मजाक बनाया गया है. लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी.

 

साल 2018 में पहली बार पेड़ों ने फल देना शुरू किया. पहले ही वर्ष में अरुण ने करीब 8 लाख का कटहल बेचा.

अगली बार आमदनी बढ़कर 16 लाख और इस बार करीब 20 लाख रुपये का कटहल बेचा है.

अरुण ने बताया कि बागवानी के बाद चार साल का सयंम रखना पड़ता है.

इस दौरान आप नीचे खाली पड़ी जमीन और खेती कर सकते हैं.

इसके बाद 45 साल तक पेड़ फल देते हैं, हां समय-समय पर जरूरी दवाइयों का छिड़काव करना पड़ता है.

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