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किसानों को सरसों की खेती वैज्ञानिक विधि से करने की सलाह

 

सरसों की खेती

 

उप संचालक किसान कल्याण तथा कृषि विकास ने बताया कि सरसों की खेती शीत ऋतु में की जाती है।

इस फसल को 18 डिग्री सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है।

सरसों की फसल के लिए फूल आते समय वर्षा, अधिक तापमान, आर्द्रता एवं वायुमंडल में बादल छाए रहना अच्छा नहीं रहता है, क्योंकि इस प्रकार के मौसम में माहूँ या चेपा के आने का अधिक प्रकोप रहता हैं।

 

किस प्रकार की मिट्टी उपयुक्त ?

इसकी खेती रेतीली से लेकर भारी माटियार मृदाओं में की जा सकती हैं। परन्तु बालुई दोमट मिट्टी इसके लिए सर्वाधिक उपयुक्त होती हैं।

यह हल्की क्षारीय भूमि को सहन कर सकती है, लेकिन अम्लीय मृदा नहीं होना चाहिए। सरसों के लिए भुरभुरी मिट्टी की आवश्यकता होती है।

एक जुताई गहरी करने के बाद तीन-चार जुताई देसी हल से करना चाहिए।

उत्पादन बढ़ाने हेतु 2 से 3 किलोग्राम राईजोबियम एवं पी.एस.बी. कल्चर को 50 किलोग्राम सड़ी हुई गोबर की खाद या वर्मीकल्चर में मिलाकर अंतिम जुताई करना चाहिए।

 

इन खादों का करे उपयोग 

सिंचित क्षेत्रो में बुवाई अक्टूबर अंत तक करनी चाहिए। बीज की मात्रा प्रति हेक्टेयर 4 से 5 किलोग्राम तथा सिंचित क्षेत्र में 2.5 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर पर्याप्त हैं।

8 से 10 टन सड़ी हुई गोबर की खाद या वर्मी कम्पोस्ट डालना चाहिए।

80 किलोग्राम नत्रजन, 30-40 किलोग्राम फासफोरस एवं 375 किलोग्राम जिप्सम या 60 किलोग्राम गन्धक प्रति हेक्टेयर की दर ये डाले।

सरसों की फसल को सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है, यदि पानी है तो 2 सिंचाई आवश्यक हैं।

सरसों की फसल 120 से 150 दिन में पककर तैयार हो जाती है, कटाई समय पर करना चाहिए नहीं तो कलियाँ चटकने लगती हैं।

 

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