बदनावर
बाहुबली और कटप्पा किस्म के तरबूज
ग्रीष्मकाल में लाल तरबूज सबको लुभाता है।
गुजरात के खेड़ा के बाद बदनावर के बाहुबली और कटप्पा किस्म के तरबूज भी देश की मेट्रो सिटी दिल्ली और मुंबई की मंडियों तक धूम मचा रहे हैं।
खरीदार खुद खेत पर आकर किसानों से नीलामी में खरीदी कर रहे हैं। वहीं कुछ किसान अपने साधन से अन्य शहरों में भेज रहे हैं।
क्षेत्र में लगभग करीब 300 बीघा में इसकी खेती हो रही है। दो वर्ष के बाद अच्छे भाव और भरपूर उत्पादन मिलने से किसानों के चेहरे पर सुर्खी दिखाई दे रही हैं।
नौ रुपये प्रति किलो तक बिक रहा
दो साल के कोरोना काल के बाद उन बागवानी फसलों की मांग है, जो ग्रीष्मकाल में आती है।
जैसे तरबूज कोरोना काल में बाहर नहीं जा पाए थे, लेकिन इस बार देश के दिल्ली-मुंबई जैसे शहरों से व्यापारी आकर किसानों के खेत देखकर ही बोली लगा रहे हैं।
अच्छी प्रजाति और गुणवत्ता का तरतबूज नौ रुपये प्रति किलो तक बिक रहा है।
जबकि कुछ संपन्ना किसान फिलहाल तरबूज देश के प्रमुख शहरों कोटा, जयपुर, जोधपुर, दिल्ली, मुंबई के अलावा उप्र के कई शहरों की मंडियों में बिक्री के लिए ले जा रहे हैं।
जहां 13 से 15 रुपये प्रति किलो तक बिक रहा है। इनमें भाड़ा किसान का ही रहता है।
खेत से खरीदी में मुनाफा
सीधे खेत से खरीदारी का तरीका किसानों को पसंद आ रहा है, क्योंकि एक बीघा तरबूज बोने में करीब 30 से 40 हजार रुपये का खर्च आता है।
प्रति बीघा 10 से 12 टन तक इसकी पैदावार होती है। इस मान से इस साल किसानों को ठीक-ठाक मुनाफा हो रहा है।
स्थानीय बाजारों में भी 15 से 20 रुपये किलो तक आसानी से तरबूज उपलब्ध हो रहा है।
90 दिन में पक जाता है, एक माह तक पैदावार
पश्चिमी बदनावर के ग्राम रूपाखेड़ा, तिलगारा, जाबड़ा, संदला, ढोलाना के अलावा कोद, बिड़वाल, कड़ौदकलां आदि क्षेत्रों के उन्नात कृषकों ने इस साल अच्छी संख्या में तरबूज बोया है।
जाबड़ा के कन्हैयालाल पाटीदार, सुनील शर्मा, बंशीलाल शंभूलाल पाटीदार, तिलगारा के गणपत पाटीदार, रूपाखेड़ा के जगदीश पाटीदार, तरुण पाटीदार, हरिओम पाटीदार आदि के अनुसार 20 से 25 दिन की नर्सरी में तैयार तरबूज के पौधे लाकर खेतों में लगाए जाते हैं।
जबकि कुछ किसान सीधे बीज रोपते हैं। भरपूर उत्पादन के लिहाज से अधिकांश किसान बाहुबली, कटप्पा, रसिका और मेक्स प्रजाति के तरबूज लगाते हैं।
जनवरी के दूसरे सप्ताह में इसकी बोवनी की जाती है और करीब 90 दिन में यह पककर तैयार हो जाता है। एक माह तक इसकी भरपूर पैदावार मिलती है।
दो वर्ष से घाटा उठा रहे थे किसान
कोरोना महामारी के दो वर्ष में तरबूज की खेती घाटे का सौदा साबित हुई थी। जब इसके खरीदार नहीं मिल रहे थे।
खेतों से अच्छे तरबूज की मांग चार से पांच रुपये प्रति किलो थी।
यहां तक की कुछ किसान तो खुद भी ट्रैक्टर-ट्रालियां भरकर छोटे शहरों में बेचने के लिए निकले थे।
छोटे तरबूज की मांग नहीं होने से फेंकना भी मजबूरी बन गया था।
बावजूद किसानों ने इस वर्ष तरबूज अधिक मात्रा में बोया है, जो लाभ का सौदा साबित होता दिखाई दे रहा है।
अभी रमजान माह चल रहा है। ऐसे में इसकी मांग अधिक होने से भाव में फिलहाल गिरावट होने की संभावना दिखाई नहीं दे रही है।
source : naidunia
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