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किसान खेत के कुछ क्षेत्र में ज़रूर करें प्राकृतिक खेती : मुख्यमंत्री श्री चौहान

 

शून्य बजट प्राकृतिक कृषि पद्धति पर हुई कार्यशाला

 

देश में कृषि की लागत को कम करने और किसानों की आय बढ़ाने के लिए प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है।

मध्य प्रदेश में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए 13 अप्रैल 2022 को शून्य बजट प्राकृतिक कृषि पद्धति पर एक दिन की कार्यशाला का आयोजन किया गया।

कुशाभाऊ ठाकरे इंटरनेशनल कन्वेंशन सेंटर भोपाल में हुई कार्यशाला में मध्यप्रदेश के राज्यपाल श्री मंगुभाई पटेल, मुख्यमंत्री श्री चौहान ने भी सहभागिता की।

केंद्रीय कृषि एवं किसान-कल्याण मंत्री श्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कार्यशाला में दिल्ली से वर्चुअली सहभागिता की।

 

प्राकृतिक कृषि जनहित में आवश्यक

इस अवसर पर मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि प्राकृतिक कृषि जनहित में आवश्यक है। इसे मिशन के रूप में प्रारंभ किया जाएगा।

किसान को अपने खेत के एक चौथाई हिस्से से यह शुरूआत करने की प्रेरणा दी जाएगी।

जिस तरह हिमाचल और गुजरात में प्राकृतिक कृषि के विकास के लिए बोर्ड बनाया गया है, मध्यप्रदेश भी यह कदम उठाएगा।

प्रशिक्षण पर विशेष जोर दिया जाएगा। कृषि विभाग के “आत्मा” प्रोजेक्ट से जुड़े अमले को प्रशिक्षित किया जाएगा।

मध्यप्रदेश की टीम हिमाचल प्रदेश जाकर प्राकृतिक कृषि के सफल प्रयोगों को देखेगी।

 

किसान खेत के कुछ हिस्से में करें प्राकृतिक खेती

मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि प्राकृतिक कृषि पद्धति पर आयोजित राज्य स्तरीय कार्यशाला सिर्फ कर्म-कांड नहीं है, यह कृषि की दशा और दिशा बदलने का महायज्ञ है।

प्रदेश में मध्यप्रदेश प्राकृतिक कृषि बोर्ड का तत्काल गठन किया जाएगा। प्राकृतिक खेती की तकनीक की जानकारी देने के लिए प्रदेश के किसानों को पुस्तक उपलब्ध कराई जाएगी।

मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि मैं स्वयं अपनी 5 एकड़ भूमि में प्राकृतिक खेती आरंभ कर रहा हूँ।

मुख्यमंत्री श्री चौहान ने प्रदेश के सभी कृषकों से अपील की कि उनके पास जितनी भी कृषि भूमि है, उसमें से कुछ क्षेत्र में वे प्राकृतिक खेती प्रारंभ करें।

इससे होने वाले लाभ से अन्य कृषक प्राकृतिक खेती विस्तार के लिए प्रेरित होंगे।

 

प्राकृतिक खेती है वैकल्पिक मार्ग

मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि यह वास्तविकता है कि उत्पादन बढ़ाने के लिए रासायनिक खाद की आवश्यकता थी, उत्पादन बढ़ाना जरूरी था।

परंतु समय के साथ इसके दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं।

रासायनिक खाद एवं कीटनाशक के अधिक उपयोग और खेती में पानी की अधिक आवश्यकता आदि से खेती की लागत बढ़ती जा रही है।

उत्पादन तो बढ़ रहा है, लेकिन खर्च भी निरंतर बढ़ता जा रहा है। खेती के इस दुष्चक्र का वैकल्पिक मार्ग खोजना होगा।

धरती के स्वास्थ्य, कृषकों की स्थिति और निरोगी जीवन के लिए प्राकृतिक खेती ही वैकल्पिक मार्ग है।

source : kisansamadhan

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