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केले की खेती करने वाले किसान हो जाए अलर्ट

 

तुरंत उठाएं ये कदम वरना सालभर रहेगी टेंशन

 

अब केले के पौधे में पोटाश की कमी होने से अच्छी फसल नहीं मिल पाएगी यहां तक की फल लगेगा जरुर लेकिन छिम्मियां कमजोर होंगी और सही कीमत नहीं मिल पाएगी.

 

केले की खेती करने वाले किसानों को सावधान हो जाना चाहिए. क्योंकि इन दिनों नई बीमारी से केले के पेड़ों को बड़ा नुकसान हो रहा है.

देश में इसकी व्यावसायिक खेती करने वाले किसान इस बात से बेहद परेशान है कि अब नई तरह की बीमारियां उनकी पूरी फसल बर्बाद करने लगी है.

कुछ दिन पहले ही आपने टीवी9 डिजिटल पर केले की फसल की सबसे खतरनाक बीमारी कोरोना के बारे में बताया था.

अब केले के पौधे में पोटाश की कमी होने से अच्छी फसल नहीं मिल पाएगी यहां तक की फल लगेगा जरुर लेकिन छिम्मियां कमजोर होंगी और सही कीमत नहीं मिल पाएगी.

 

डा. राजेंद्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा , समस्तीपुर, बिहार के अखिल भारतीय फल अनुसन्धान परियोजन एवं एसोसिएट डायरेक्टर रिसर्च प्रोफेसर (प्लांट पैथोलॉजी) ,डॉ एसके सिंह टीवी9 डिजिटल के जरिए किसानों को पोटास की कमी से होने वाले असर के बारे में बताते हैं.

 

जानिए क्या है पूरा मामला

केले की फसल लगाने वाले किसान यह जान ले कि पौधे के लिए पोटाश एक बहुत ही महत्वपूर्ण पोषक तत्व है .

इसकी कमी होने पर कतई अच्छी उपज नही लिया जा सकता है.

पोटाशियम की कमी से वृद्धि में उल्लेखनीय कमी आती है, अंतराल बहुत कम होता है, पौधे का समय से पहले पीलापन होता है.

पेटीओल्स (डंठल)के आधार पर बैंगनी भूरे रंग के पैच दिखाई देते हैं.

 

गंभीर मामलों में प्रकंद (कॉर्म) का केंद्र भूरा, पानी से लथपथ विघटित कोशिका संरचनाओं का क्षेत्र जैसा दिखाता है.

फलों का विकास रुक जाता है

डॉक्टर सिंह के मुताबिक पोटास की कमी के कारण केले के घोंद में सबसे पहले दिखने लगता है.

फल खराब आकार के निकलने लगता है जिसके कारण विपणन के लिए अनुपयुक्त होते हैं.

विभाजन द्वितीयक शिराओं के समानांतर विकसित होते हैं और लैमिना नीचे की ओर मुड़ जाती है, जबकि मध्य सिरा झुक जाती है और टूट जाती है, जिससे पत्ती का बाहर का आधा भाग लटक जाता है.

 

केला की सफल खेती के लिए 300 ग्राम नत्रजन, 50 ग्राम फास्फोरस एवं 300 ग्राम पोटाश /पौधा /फसल तत्व के रूप में देना आवश्यक है.

नत्रजन एवं पोटाश जैसे पोषक तत्वों को 2 महीने के अंतर पर या 3 महीने के अंतर पर ,उत्तक संवर्धन की फसलों में 9वे महीने तक एवं प्रकंद द्वारा तैयार फसल में 11/12महीने तक उर्वरकों के रूप में प्रयोग करते है.

फास्फोरस की पूरी मात्रा को रोपाई से पूर्व या रोपाई के समय ही दे देना चाहिए.

इस तरह के लक्षण गायब होने तक साप्ताहिक अंतराल पर KCl 2% का पर्ण छिड़काव करें.

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