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जलवायु परिवर्तन से फसलों के उत्पादन में आ सकती है 47 प्रतिशत की कमी

 

भारत में जलवायु परिवर्तन का कृषि पर प्रभाव

 

मानव सभ्यता के विकास में कृषि का योगदान सबसे महत्वपूर्ण है, आज भी दुनिया की अधिकांश आबादी कृषि क्षेत्र से जुडी हुई है।

समय के साथ एवं बढ़ती हुई जनसंख्या आदि कारणों से कृषि पद्धतियों में काफी बदलाब आये हैं।

भारत में ही 70 के दशक में हरित क्रांति लाई गई थी जिससे आज देश अनाज उत्पदान में आत्मनिर्भर हो गया है।

परन्तु आज भी कृषि के सामने कई चुनौतियां हैं जिसमें जलवायु परिवर्तन मुख्य है।

भारत पर भी जलवायु परिवर्तन का असर देखा जा रहा है, इस जलवायु परिवर्तन से हमारे देश की खेती पर क्या असर होगा इस पर चर्चा की जा रही है।

 

आजकल हर मौसम में जलवायु परिवर्तन विशेष चर्चा का विषय बना हुआ है।

विश्व जलवायु परिवर्तन की समस्या से जूझ रहा है, जिससे भारत भी अछूता नहीं रह गया है।

जलवायु परिवर्तन के कारण पर्यावरण में अनेक प्रकार के परिवर्तन जैसे तापमान में वृद्धि, वर्षा का कम या ज्यादा होना, पवनों की दिशा में परिवर्तन आदि हो रहे हैं, जिसके फलस्वरूप कृषि पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है।

जलवायु परिवर्तन का मुख्य कारण ग्लोबल वार्मिंग है एवं ग्लोबल वार्मिंग का मुख्य कारण पर्यावरण में ग्रीन हाउस गैसों जैसे कार्बन डाइ ऑक्साइड (CO2), मीथेन (CH4), नाइट्रस ऑक्साइड (NO), की मात्रा में वृद्धि है। इसका पप्रभाव कृषि क्षेत्र पर भी अब दिखने लगा है।

 

इसी मुद्दे पर लोकसभा में सांसद उमेश जी. जाधव, श्री प्रताप सिम्हा, श्री कराडी सनगणना अमरप्पा के ने केन्द्रीय कृषि मंत्री श्री नरेंद्र सिंह तोमर से सवाल पूछा था कि भूमंडलीय तापन के प्रतिकूल प्रभाव के संबंध में कोई रिपोर्ट जारी की है तो इसकी जानकारी दें।

क्या भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद् ICAR ने भी देश के कृषि क्षेत्र पर भूमंडलीय तापन के प्रभाव का आकलन किया है उसकी जानकारी दी जाए?

केन्द्रीय कृषि मंत्री ने इस संबंध में लोकसभा में जलवायु परिवर्तन के संबंध में जानकारी दी है।

 

जलवायु परिवर्तन का फसल उत्पादन पर असर

केन्द्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्री श्री नरेंद्र सिंह तोमर के लोकसभा में दिये गये जवाब के अनुसार Globle Warming (भूमंडलीय तापन) का असर फसलों के उत्पादन पर पड़ रहा है तथा आने वाले वर्षों में फसलों के उत्पादन पर ओर भी बड़ा असर पड़ने वाला है।

अध्ययन के अनुसार अनुकूलन उपायों को न अपनाने के कारण, जलवायु परिवर्तन के अनुमानों में 2050 में वर्षा – सिंचित चावल की पैदावार में 20% और 2080 के परिदृश्य में 47% की कमी होने की संभावना है जबकि, 2050 में सिंचित चावल की पैदावार में 3.5% और 2080 के परिदृश्य में 5% की कमी आएगी।

 

इसी प्रकार गेहूं की पैदावार में 2050 में 19.3% तक और 2080 के परिद्द्श्य में 40% और खरीफ मक्का की पैदावार में 2050 तथा 2080 के परिदृश्य में 18 से 23% तक की कमी होने की संभावना है | मूंगफली की पैदावार में भी कमी आने की अनुमान है।

खरीफ मूंगफली की पैदावार में 2050 के परिदृश्य में 7% वृद्धि होने जबकि 2080 के परिदृश्य में 5% की गिरावट होने की संभावना है।

भविष्य की जलवायु–परिस्थितियों से चने की उत्पादकता में वृद्धि के कारण लाभ होने की संभावना है।

 

भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद ICAR द्वारा किया गया है आंकलन

कृषि मंत्री ने बताया की जलवायु और गैर-जलवायु समबन्धी प्रासंगिक सूचना के साथ उभर रही अवधारणात्मक और विश्लेषणात्मक विधियों को ध्यान में रखते हुए भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद ICAR द्वारा जलवायु परिवर्तन के कारण भारतीय कृषि के जोखिम और संवेदनशीलता का आंकलन किया गया था।

इसमें जलवायु परिवर्तन जोखिम और विभन्न जिलों की सापेक्ष स्थिति के बारे में सूचना शामिल है, जो जलवायु परिवर्तन कार्रवाई योजनाओं से समबन्धित संसाधनों की प्राथमिकता का निर्धारण करने के लिए नीति निर्माताओं और अनुसन्धान प्रबंधकों के लिए उपयोगी है।

रिस्क एंड वल्नेरेबिलिटी एस्सेस्मेंट ऑफ इंडियन एग्रीकल्चर टू क्लाइमेट चेंज” शीर्षक दस्तावेज वर्ष 2019 में जारी किया गया था।

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