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रजनीगंधा फूल की खेती से किसान कर सकते हैं मोटी कमाई

 

रजनीगंधा फूल की खेती

 

कैसे करें की रजनीगंधा फूल की खेती, कैसी मिट्टी है उपयुक्त, जानिए कौन-कौन सी किस्मों में मिलेगी अच्छी पैदावार.

 

रजनीगंधा फूल की उन्नत खेती से अच्छी कमाई कर सकते हैं किसान.

रजनीगंधा फूल एक व्यावसायिक फूल की फसल है ईसकी खेती महाराष्ट्र में अच्छी तरह से की जा सकती है और यह फसल राज्य में उत्कृष्ट उपज देती है.

रजनीगंधा के फूलों का उपयोग मालाओं में किया जाता है. इसके अलावा, विभिन्न प्रकार के फूलों की व्यवस्था में इन फूलों का एक विशेष स्थान है.

इसमें सिंगल और डबल फूलों की पंखुड़ियां होती हैं. एकल प्रकार के रजनीगंधा के फूल अधिक सुगंधित होते हैं और मालाओं में उपयोग किए जाते हैं फूलों की व्यवस्था और गुलदस्ते में डबल टाइप ट्यूबरोज फूलदान का उपयोग किया जाता है.

यह कन्द से तैयार किया जाने वाला पौधा है .इन फूलों का इस्तेमाल परफ्यूम बनाने में भी किया जाता है.

 

रजनीगंधा फूल के लिए कैसी होनी चाहिए भूमि और जलवायु?

रजनीगंधा फूल को किसी भी जलवायु में उगाया जा सकता है. इसके लिए, अच्छी जल निकासी वाली भूमि अच्छी जल निकासी वाली होती है.

जल निकासी के बिना कंद मिट्टी में सड़ जाते हैं और पेड़ मर जाता है. अत: इस फसल के लिए दलदली एवं असिंचित भूमि का चयन नहीं करना चाहिए.

 

रजनीगंधा की किस्म

1. एकहरा

फूल सफेद रंग के होते हैं तथा पंखुड़ियाँ केवल एक ही पंक्ति में होती है।

2. डबल

इसके फूल भी सफेद रंग के ही होते हैं परन्तु पंखुड़ियों का ऊपरी शिरा हल्का गुलाबी रंगयुक्त होता है. पंखुड़ियाँ कई पंक्ति में सजी होती हैं जिससे फूल का केन्द्र बिन्दु दिखाई नहीं देता है.

 

रोपण

मिट्टी के प्रकार के आधार पर कंद की खेती समतल धान या साड़ी-वरम्बा पर की जाती है.

यदि यह हल्का से मध्यम और अच्छी तरह से सूखा हुआ है, तो 3 मी. एक्स 2 एम.30 x 20 सेमी.4 से 5 सेमी की दूरी पर. गहरी बुवाई की जाती है.

अगर जमीन थोड़ी उबड़-खाबड़ है, तो 45 X 30 सेमी. वरम्बा के केंद्र में 5 से 6 सेमी की दूरी पर. गहरे प्याज लगाए जाते हैं.

कंद को प्रति हेक्टेयर 1 लाख से 1.5 लाख कंद की आवश्यकता होती है. रोपण के तुरंत बाद पानी.

 

रोपण पूर्व तैयारी

जिस भूमि में कंद लगाना है, उसकी मार्च-अप्रैल के महीने में गहरी जुताई कर देनी चाहिए.

उसके बाद दो से तीन बार जोताई करनी चाहिए. फिर प्रति हेक्टेयर 25 से 30 टन अच्छी तरह से सड़ी हुई खाद डालें और रोपण से पहले मिट्टी में 75 किग्रा एन, 300 किग्रा पी और 300 किग्रा के प्रति हेक्टेयर मिलाएं.

उपरोक्त सभी जैविक और रासायनिक उर्वरकों को मिट्टी में अच्छी तरह मिलाना चाहिए और फिर मिट्टी को मिट्टी के प्रकार के अनुसार समतल करके मिट्टी को संकुचित करना चाहिए.

 

पानी और उर्वरक का सही उपयोग

रोपण के 45 दिन बाद 65 किग्रा एन / हेक्टेयर और रोपण के 90 दिन बाद 60 किग्रा एन डालें। कंद को प्रति वर्ष 200 किग्रा एन, 300 किग्रा पी और 300 किग्रा के की आवश्यकता होती है.

कंद की फसल को मौसम और मिट्टी की स्थिति के आधार पर 8 से 10 दिनों के बाद पत्ती सड़ देनी चाहिए.

यदि कंदों में पानी का छिड़काव स्प्रिंकलर सिंचाई से किया जाए तो उपज में वृद्धि की जा सकती है.

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