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उज्जैन जिले में अश्वगंधा की खेती कर पांच गुना मुनाफा कमा रहे किसान

 

अश्वगंधा की खेती

 

पंजाब, राजस्थान के अलावा अब मध्य प्रदेश के मंदसौर, नीमच, सुवासरा एवं अब उज्जैन जिले में भी इसको बोने की शुरुआत हुई।

 

तहसील के किसान औषधीय खेती कर सामान्य से पांच गुना अधिक लाभ अर्जित कर रहे हैं।

तहसील के रूपाहेड़ा गांव के प्रगतिशील किसान भौमसिंह पंवार ने एक बीघा रकबा में अश्वगंधा बोई थी। लागत खर्च निकाल कर सवा लाख रुपये की कमाई हुई।

आयुर्वेद औषधि निर्माता ब्रांडेड कंपनियां आयुर्वेद उत्पादों को किसानों से अच्छे दाम में खरीदती है।

कृषक भौमसिंह पंवार ने पिछले साल एक बीघा में अश्वगंधा का 6 किलो बीज बोया था, जिसमें अश्वगंधा की उपज 4 क्विंटल हुई और नीमच मंडी में उसकी जड़ 35 हजार रुपये प्रति क्विंटल बेची।

 

अश्वगंधा की पत्तियों का भूसा भी बिका

पत्तियों का भूसा 12 हजार में बेचा। इस प्रकार आय एक लाख 52 हजार रुपये लागत खर्च 25 हजार रुपये काट के शुद्ध लाभ मिला एक लाख 27 हजार रुपये हुआ।

इस बार भौमसिंह ने पांच बीघा में अश्वगंधा उगाया है।

एक बीघा में लागत बीज की कीमत 2 हजार रुपये, डीएपी उर्वरक एक थैली कीमत 1200 रुपये, निंदाई-कटाई एवं उखाड़ने की मजदूरी 20 हजार रुपये सहित कुल लागत खर्च आया 25 हजार रुपये आएगा।

 

 उज्जैन जिले में अश्वगंधा का रकबा बढ़ा

उद्यानिकी विभाग नर्सरी ग्राम मौलाना की ग्रामीण विकास अधिकारी ज्योति शर्मा ने बताया कि रबी सीजन में कृषक भौमसिंह पंवार एवं कृषक शैलेंद्रसिंह राठौर सहित जिले के किसानों ने इस सीजन में करीब 25 हेक्टेयर में अश्वगंधा की फसल उगाने के लिए 15 अक्टूबर को इसकी बोनी कर दी है।

इस फसल की जड़ें एवं पत्तियां दोनों बिकती हैं। कृषि विस्तार अधिकारी अनिल कुमार सक्सेना ने भी आयुर्वेदिक खेती दोनों खरीफ एवं रबी सीजनों में बोने की सलाह किसानों को दी है।

अन्य प्रांतों की अपेक्षा ये फसल देश के पंजाब, राजस्थान के अलावा अब मध्य प्रदेश के मंदसौर, नीमच, सुवासरा एवं अब उज्जैन जिले में भी इसको बोने की शुरुआत हुई है।

बरसात के सीजन में जून माह में और रबी सीजन में 15 अक्टूबर तक अश्वगंधा बोनी चाहिए।

कम नमी होने पर बारिश के मौसम में ढलान वाले खेतों में यह फसल अधिक मुनाफा देती है।

खेत में पानी जमा नहीं होना चाहिए। रबी सीजन में 4 बार सिंचाई पर्याप्त है।

 

अश्वगंधा से सवा लाख रुपये का शुद्ध लाभ

कृषक पंवार ने बताया कि एक बीघा में सोयाबीन बोने पर 4 क्विंटल के औसत से 30 हजार रु. की ही कमाई होती, जबकि अश्वगंधा से एक बीघा में सवा लाख रुपये की कमाई हुई।

अश्वगंधा की खड़ी फसल को मवेशी भी नहीं खाते।

बकरे, घोड़ा आदि जानवरों को इसका स्वाद अच्छा नहीं लगता है, जिससे इसकी सुरक्षा करने बागड़ लगाने की भी आवश्यकता नहीं है।

औषधीय खेती है, तीन से साढ़े तीन माह में फसल तैयार हो जाती है।

आयुष चिकित्सक डा. राजेश्वरी मेहरा के मुताबिक अश्वगंधा रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाती है।

हर तरह की बीमारी में बिना साइड इफेक्ट के काम करती है।

अश्वगंधा को बोने हेतु किसानों को प्रोत्साहित करने हेतु शासन को चाहिए कि इसे उद्यानिकी विभाग की योजना में शामिल करना चाहिए।

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