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किसान सौंफ की खेती कर कमा सकते हैं अच्छा मुनाफ़ा

सौंफ की खेती

 

भारत को पुरातन काल से मसालों की भूमि के लिए जाना जाता है.

मुख्य बीजीय मसाला फसलों में जीरा, धनिया, मेथी, सौंफ, कलौंजी इत्यादि प्रमुख हैं. इनमें से सौंफ भारत की एक महत्वपूर्ण मसाला फसल है.

इसकी खेती रबी एवं खरीफ, दोनों ही मौसमों में सफलतापूर्वक की जा सकती है, परन्तु खरीफ मौसम में अत्यधिक वर्षा के कारण फसल के ख़राब होने की आशंका रहती है.

 

रबी मौसम इसकी खेती के लिए उत्तम माना जाता है, क्योंकि इस मौसम में कीटों एवं रोगों का प्रकोप कम होता है तथा वर्षा के कारण फसल खराब होने का खतरा नहीं होता है एवं खरीफ के अपेक्षा उत्पादन में भी वृद्धि होती है. 

 

सौंफ में पाचक तथा वायुनाशक दोनों गुण पाए जाते हैं. इसमें पोटैशियम, कैल्शियम, फॉस्फोरस एवं लौह तत्वों के साथ-साथ वाष्पशील तेल संघटक जैसे एथेनॉल, लिमोजिन, फेकान इत्यादि पाए जाते हैं.

इसके अतिरिक्त सौंफ में एनाल्जेसिक, एंटी-इन्फलामेटरी एवं एन्टीऑक्साइड गुण भी उपस्थित होते हैं.

 

जलवायु

सौंफ की अच्छी उपज के लिए शुष्क एवं ठंडी जलवायु उत्तम होती है.

बीजों के अंकुरण के लिए उपयुक्त तापमान 20-29 डिग्री सेंटीग्रेट तथा फसल की अच्छी बढ़वार के लिए 15-20 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान उपयुक्त होता है.

 

भूमि

सौंफ की खेती रेतीली भूमि को छोड़कर अन्य सभी प्रकार की भूमि जिसमें पर्याप्त मात्रा में जैविक पदार्थ उपस्थित हो तथा मृदा का पी.एच. मान 6.6 से 8.0 के बीच हो, में सफलतापूर्वक की जा सकती है.

 

भूमि की तैयारी

भूमि की तैयारी हेतु सर्वप्रथम एक या दो जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए. इसके पश्चात पाटा लगाकर मिट्टी को भुरभुरी कर खेत को समतल कर सुविधानुसार क्यारियां बना लेनी चाहिए.

 

उन्नत किस्में

आर.एफ-105, आर.एफ-125, पी.एफ-35, गुजरात सौंफ-1, गुजरात सौंफ-2, गुजरात सौंफ-11, CO-11, हिसार स्वरुप, एन.आर.सी.एस.एस.ए.एफ-1

 

बुवाई का समय

सौंफ लंबी अवधि की फसल है अतः रबी मौसम की शुरुआत में बुवाई कर अधिक उपज प्राप्त की जा सकती है.

सौंफ की सीधे खेत में या पौधशाला में पौध तैयार कर रोपण किया जा सकता है. इसकी बुवाई के लिये अक्टूबर का प्रथम सप्ताह सर्वोत्तम रहता है.

पौधशाला में बुवाई जुलाई-अगस्त माह में की जाती है एवं 45-60 दिन पश्चात पौधारोपण किया जाता है

बीजोपचार

 बीज बुवाई से पूर्व बीज को फफूंदनाशक दवा बाविस्टीन (2 ग्राम प्रति किग्रा बीज की दर) से उपचारित करें या बीजों को जैविक फफूंदनाशक ट्राईकोडर्मा (8-10 ग्राम प्रति किग्रा बीज) से उपचारित कर बुवाई करें.

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