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गंभीर रोगों की रोकथाम के लिए गाय-भैसों का कब-कब करवाएं टीकाकरण

बदलते मौसम में पशु कई संक्रामक रोगों के शिकार हो जाते हैं, जिससे बचने के लिए पशुओं का टीकाकरण करवाने की सलाह दी जाती है.

वैक्सीनेशन से पशुओं का इम्यून सिस्टम मजबूत हो जाता है.

 

क्या कहते हैं पशु विशेषज्ञ

इलाज से बेहतर है सावधानी…ये सलाह सिर्फ इंसानों के लिए ही नहीं, पशुओं के बेहतर स्वास्थ्य के लिए भी दी जाती है.

ये दौर बीमारियों का है. इंसानों के साथ-साथ पशु भी कई संक्रामक रोग की चपेट में आ रहे हैं.

यदि समय पर इलाज ना मिले तो कई बार पशुओं की मृत्यु भी हो जाती है. इस गंभीर परिस्थितियों में पशुपालकों को काफी नुकसान हो जाता है.

यही वजह है कि पशु विशेषज्ञ अब पशुओं के लिए बचाव के तौर पर टीकाकरण करवाने की सलाह देते हैं.

विशेषज्ञ बताते हैं कि पशुओं की लगभग सभी गंभीर बीमारियों के लिए टीके विकसित किए जा चुके हैं.

ये बीमारियों से बचाव का सबसे आसान, सस्ता और सरल उपाय है.

 

कौन सी हैं गंभीर बीमारियां

पशु विशेषज्ञ बताते हैं कि पशुओं की सबसे गंभीर बीमारी खुरपका और मुंहपका है, जिसमें मुंह और खुर में छाले या दाने निकलने लगते हैं.

तकलीक के चलते पशु आहार पानी लेना बंद कर देता है. कई स्थानों पर एंथ्रेक्स नामक बीमारी भी पशुओं में देखी जाती है.

ब्रूसेल्लोसिस, एचएसबीक्यू यानी लंगड़ा बुखार और गलघोंटू रोग जैसे गंभीर और जानलेवा रोगों की संभावना मौसम के साथ बढ़ जाती है.

 

कब-कब करवाएं टीकाकरण

पशुपालन विभाग ने पशुओं को गंभीर रोगों से बचाने के लिए टीकाकरण करवाने की सलाह दी है और बताया है कि एनीमल वैक्सीनेशन के जरिए पशु रोग की रोकथाम, खाद्य उत्पादन की दक्षता बढ़ाने और लोगों में खाद्य जनित संक्रमण रोकना आसान हो जाता है.

खुरपका-मुंहपका रोग से बचाव के लिए पशु को 4 महीने, दूसरी डोज 8 महीने और फिर बूस्टर के तौर पर हर साल इस वैक्सीनेशन को रिपीट किया जाता है.

कई बार गलाघोंटू रोग पशुओं के लिए जानलेवा साबित होता है.

पशुओं तो इस रोग से बचाने के लिए 6 महीने के अंतराल पर टीकाकरण अवश्य करवाना चाहिए.

स्थानीय हालातों को ध्यान में रखते हुए हर साल गलघोंटू के खिलाफ पशुओं का टीकाकरण करवा सकते हैं.

मादा पशुओं में ब्रूसेल्लोसिस जैसी गंभीर बीमारियों का खतरा बना रहता है. इस संक्रामक रोग के कारण पशु का गर्भपात हो जाता है.

इस रोग की रोकथाम के लिए 4-8 महीने के उम्र वाले मादा बछड़े या पाड़ों को जीवन में एक बार टीकाकारण अवश्य करवाना चाहिए.

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