उन्नत किस्में और बुवाई का तरीका
जायद का सीजन शुरू होने वाला है. इस सीजन में किसान कई सब्जियों की खेती करते हैं. जायद की फसलों में भिंडी प्रमुख सब्जी मानी जाती है. देशभर में इसकी भारी मांग रहती है.
किसान भिंडी की फसल से एक सीजन में अच्छी आमदनी कमा सकते हैं. आइए आज हम अपने भाईयों को भिंडी की उन्नत किस्मों और उसकी खेती के बारे में जानकारी देते हैं.
जायद की भिंडी
इस सीजन में भिंडी की खेती करने से पौधा छोटा व शीघ्र फल देता है.
उन्नत किस्में
- परभन क्रांति
- पूसा सावनी
- पंजाब पद्मनी
- पूजा ए-4
- अर्का भय
- अर्का अनामिका
- पंजाब-7
- पंजाब-13 भिंडी
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उपयुक्त भूमि
भिंडी की खेती सभी प्रकार की भूमि में कर सकते हैं, लेकिन अधिक उत्पादन के लिए दोमट, बलुई दोमट और मटियार दोमट मिट्टी उपयुक्त मानी जाती है.
बीज उपचार
- इसके लिए बीज को पानी में 24 से 36 घंटे के लिए भिगोकर रख जाता है.
- इसके बाद छाया वाले स्थान पर सूखने के लिए रख देते हैं.
- बुवाई से पहले बीज को 2 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से किसी भी फफूंदीनाशक में अच्छी तरह मिला देना चाहिए.
बीज मात्रा
ग्रीष्म ऋतु में भिंडी की खेती करने के लिए 20 किलोग्राम और वर्षा ऋतु खेती के लिए 12 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर चाहिए होते हैं.
बुवाई का तरीका
भिंडी की बुवाई करते समय कतार से कतार की दूरी 30 सेमी और पौधे से पौधे की दूरी 12 से 15 सेमी रखनी चाहिए.
खाद एवं उवर्रक
प्रति हेक्टेयर 8 टन गोबर खाद, 45 किग्रा नाइट्रोजन, 22 किग्रा फॉस्फोरस तथा 22 किग्रा पोटाश की ज़रूरत होती है.
खेत में गोबर खाद का प्रयोग बुवाई से 3 से 4 सप्ताह पहले कर देना चाहिए, तो वहीं नाइट्रोजन की आधी, फास्फोरस और पोटाश की संपूर्ण मात्रा का प्रयोग अंतिम जुताई के साथ करना चाहिए. बाकी नाइट्रोजन को आधी मात्रा में 2 बार देना चाहिए.
सिंचाई
पूरे खेत को उचित आकार की पट्टियों में बांट लें, ताकि सिंचाई करने में सुविधा हो. बारिश के मौसम में जल भराव से बचाने के लिए उठी हुई क्यारियों में भिंडी की बुवाई करना चाहिए.
तुड़ाई
फसल लगभग दो-ढाई महीने बाद फल तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है. तुड़ाई के बाद फल 3 से 5 दिन तक खाने योग्य रहते हैं, जबकि यह अवधि पूसा सावनी में 7 दिन तक की रहती है.
उत्पादन
उपयुक्त तकनीक से भिंडी की खेती करने पर प्रति हेक्टेयर 115 से 125 क्विंटल पैदावार प्राप्त हो सकती है. इससे किसान भाईयों को अच्छी आमदनी प्राप्त हो सकती है.
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स्त्रोत : कृषि जागरण
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