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जैविक खाद का प्रयोग करके बढ़ा सकते है मिट्टी की उर्वरा शक्ति

जैविक खाद का प्रयोग

 

खेती में रासायनिक उर्वरकों के अंधाधुंध प्रयोग से मिट्टी की उर्वराशक्ति कम होती है, साथ ही खेती की लागत भी बढ़ जाती है।

ऐसे में जरूरी है कि गांवों में किसान खुद जैविक खाद बनाकर उसका उपयोग करें तो मिटटी की उर्वरा शक्ति और अच्छे उत्पादन से आय भी बढ़ेगी।

यह बात प्रगतिशील किसान चितरंजन चौरसिया ने फार्म हाउस के भ्रमण पर आए स्कूल के छात्रों को समझाते हुए कही है।

 

जैविक खाद बनाकर फसलों में प्रयोग

चौरसिया ने कहा कि जैविक खाद के प्रयोग से स्वास्थ्य, पर्यावरण सुरक्षित रहेगा और रासायनिक उर्वरक के प्रयोग से भूमि की कम हो रही उर्वरा शक्ति को भी बचाया जा सकता है।

प्रगतिशील किसान चितरंजन चौरसिया ने जैविक खेती की ओर किसानों का रूझान तेजी से बढ़ रहा है।

किसान नाडेप खाद जीवामृत, मटका खाद, बायोगैस स्लरी सहित अन्य प्रकार के जैविक खाद बनाकर फसलों में प्रयोग कर रहे हैं, जिससे कम लागत में भरपूर उत्पादन मिल रहा है।

उन्होंने बताया कि जैविक खाद से कई प्रकार की बीमारियों से बचा जा सकता है, क्योंकि रासायनिक उर्वरकों व कीटनाशकों के प्रयोग से उपजे अनाज, सब्जियों को खाने से कई शारीरिक बीमारियां होने का खतरा बना रहता है।

 

खेत के अपशिष्टों से बनती है जैविक खाद

छात्रों द्वारा जैविक खाद बनाने के सवाल का जवाब देते हुए प्रगतिशील किसान चितरंजन चौरसिया ने उन्हें बताया कि खेत में मिलने वाले अपशिष्टों में चारा, फसल अवशेष, पत्ते व गोबर से जैविक खाद बनाई जाती है।

इसमें बाहर की किसी सामग्री की जरूरत नहीं होती है। उन्होंने छात्रों को केंचुआ खाद बनाने की विधि विस्तार से बताई।

विद्यालय की प्राचार्य आभा श्रीवास्तव ने बताया कि विद्यालय में अधिकांश छात्र-छात्राएं ग्रामीण क्षेत्र के अध्ययनरत हैं, उनके परिवारों में खेती ही मुख्य व्यवसाय है।

इस भ्रमण से जानकारी लेकर बच्चे परिवार में इसे बताकर जैविक खाद के उपयोग को सरलता से बढ़ाव देने में भूमिका निभा सकेंगे।

शिक्षक दिनेश तिवारी ने बताया कि विद्यालय में छात्र-छात्राओं को कृषि, बागवानी से जोड़ने के लिए कृषि वाटिका तैयार की गई है, अब वाटिका में जैविक विधि से हरी सब्जियां उगाईं जाएंगी।

इस दौरान बच्चों को पिपरमेंट की खेती और प्लांट से तेल निकालने की विधि बताई गई।

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