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गेहूं, सरसों और अलसी की ये नई किस्में देंगी कम समय में ज्यादा उत्पादन

 

गेहूं, सरसों और अलसी की नई किस्में

 

रबी सीजन में किसान भाई गेहूं और सरसों की बुवाई काफी तेजी से कर रहे हैं.

उन्हें फसल से अच्छा और ज्यादा उत्पादन मिले, इसके लिए गेहूं व सरसों की नई उन्नत किस्मों का चयन भी कर रहे हैं.

इसी कड़ी में चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा गेहूं, सरसों और अलसी की नई किस्मों को विकसित किया गया है.

किसान भाई इन किस्मों की बुवाई कर फसलों से अच्छा उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं.

 

बता दें कि उत्तर प्रदेश के किसानों के लिए गेहूं, सरसों और अलसी की नई किस्म बहुत उपयोगी हैं.

ये किस्में फसल को रोगों से बचाने के साथ-साथ जलवायु के अनुकूल हैं.

कुलपति डॉ. डीआर सिंह ने बताया है कि इन किस्मों के विकसित होने से किसानों को अच्छा और ज्यादा मुनाफा होगा.

ये कम समय में अच्छी पैदावार देंगी. इन किस्मों की बुवाई करने के लिए राज्य बीज विमोचन समिति लखनऊ ने मान्यता मिल गई है.

तो आइए इन नई किस्मों की जानकारी देते हैं.

 

गेहूं, सरसों व अलसी की नई किस्में

  • गेहूं की के-1711
  • सरसों की केएमआरएल 15-6 (आजाद गौरव)
  • अलसी की एलसीके-1516 (आजाद प्रज्ञा)

 

गेहूं की के-1711 किस्म

इस किस्म को विकसित करने वाले वैज्ञानिक डॉ. सोमबीर सिंह ने बताया है कि यह किस्म राज्य के ऊसर प्रभावित क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है.

इससे करीब 38 से 40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन मिल जाएगा. इसके साथ ही करीब 125 से 129 दिनों में पककर तैयार हो जाएगी.

इस किस्म में प्रोटीन की मात्रा 13 से 14 प्रतिशत पाई जाती है, जो कि अन्य किस्मों की तुलना में अधिक है.

इस किस्म में रस्ट और पत्ती झुलसा रोग भी नहीं लगता है.

 

सरसों की केएमआरएल 15-6 (आजाद गौरव) किस्म

इस किस्म को विकसित करने वाले वैज्ञानिक डॉ. महक सिंह जानकारी देते हैं कि यह किस्म  120 से 125 दिनों में पककर तैयार होती है.

इसकी उत्पादन क्षमता 22 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. इसमें तेल की मात्रा 39 से 40 प्रतिशत होती है.

उन्होंने बताया कि इसका दाना मोटा है, साथी ही रोग व कीट का प्रकोप कम होता है. यह किस्म कोहरे से भी काफी हद तक बची रहती है.

 

अलसी की एलसीके-1516 (आजाद प्रज्ञा) किस्म

इस किस्म को विकसित करने वाली वैज्ञानिक डॉ. नलिनी तिवारी ने बताया कि यह किस्म राज्य के सिंचित क्षेत्रों के लिए बहुत उपयुक्त है.

इस किस्म से 20 से 28 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज मिल सकती है.

यह 128 दिनों में पककर तैयार हो जाती है, जिसमें तेल की मात्रा 35 प्रतिशत है. यह किस्म कीट व रोगों के प्रति सहनशील होती है.

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