उन्नत किस्मों MH 1762 और MH 1772 के बीज
ज्यादा से ज्यादा किसानों तक मूंग की अधिक पैदावार देने वाली उन्नत किस्मों MH 1762 और MH 1772 के बीज उपलब्ध कराने के लिए चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय द्वारा राजस्थान एग्री सीड्स कंपनी के साथ समझौता किया गया है।
फसलों का उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाने के लिए कृषि विश्वविद्यालयों द्वारा लगातार विभिन्न फसलों की नई-नई उन्नत किस्मों का विकास किया जा रहा है।
ऐसे में अधिक से अधिक किसानों को इन किस्मों के बीज खेती के लिए उपलब्ध कराए जा सकें इसके लिए कई प्रयास किए जा रहे हैं।
इस कड़ी में चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित मूंग की उन्नत किस्मों की बढ़ती मांग को देखते हुए विश्वविद्यालय ने इसके तकनीकी व्यवसायीकरण को बढ़ावा देते हुए राजस्थान एग्री सीड्स कंपनी के साथ करार किया है।
विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.बी.आर काम्बोज ने बताया कि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित उन्नत किस्में ज्यादा से ज़्यादा किसानों तक पहुँचे इसके लिए विभिन्न राज्यों की कंपनियों के साथ समझौते किए जा रहे हैं।
आज किए गए समझौते के तहत विश्वविद्यालय द्वारा विकसित मूंग की दो उन्नत किस्मों MH 1762 और MH 1772 का बीज तैयार कर कंपनी किसानों तक पहुंचाएगी ताकि उन्हें इन किस्मों का विश्वसनीय बीज मिल सकें और उनकी पैदावार में इजाफा हो सके।
क्या है मूंग की उन्नत किस्मों MH 1762 और MH 1772 की खासियत
अनुसंधान निदेशक डॉ. राजबीर गर्ग ने बताया कि MH 1762 और MH 1772 किस्में पीला मौजेक एवं अन्य रोगों के लिए प्रतिरोधी है।
MH 1762 किस्म बसंत एवं ग्रीष्म काल में भारत के उत्तर पश्चिमी मैदानी क्षेत्रों में बिजाई के लिए एवं MH 1772 किस्म खरीफ में भारत के उत्तर पूर्वी मैदानी क्षेत्रों में खेती के लिए अनुमोदित की गई है।
MH 1762 किस्म लगभग 60 दिनों में और MH 1772 किस्म लगभग 67 दिनों में एक साथ पककर तैयार हो जाती है।
मूंग की दोनों ही किस्मों के दाने चमकीले हरे रंग के मध्यम आकार के होते हैं। दोनों ही किस्में सभी प्रचलित किस्मों से 10 से 15 प्रतिशत अधिक पैदावार देती हैं।
इसमें मूँग किस्म MH 1762 की औसत उपज 14.5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर एवं MH 1762 किस्म की औसत उपज 13.5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।
नई किस्में बेहतर प्रबंधन से और भी अच्छे परिणाम देती है और मूँग की अधिकतर बीमारियों के लिए रोगरोधी है।
कंपनी विश्वविद्यालय को देगी लाइसेंस फीस
विश्वविद्यालय की ओर से समझौता ज्ञापन पर अनुसंधान निदेशक राजबीर गर्ग ने तथा राजस्थान की स्टार एग्रो सीड्स कंपनी की तरफ से डॉ. विक्रांत खरे ने हस्ताक्षर किए व उनके साथ आशीष सिंह उपस्थित रहे।
स्नातकोत्तर शिक्षा अधिष्ठाता डॉ. केडी शर्मा ने बताया कि समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर होने के बाद अब कंपनी विश्वविद्यालय को लाइसेंस फीस अदा करेगी, जिसके तहत उसे बीज का उत्पादन व विपणन करने के अधिकार प्राप्त होगा। इससे किसानों को भी उन्नत किस्म का बीज मिल सकेगा।
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