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तैयार की गई कई तरह की जैविक खाद

बंपर पैदावार का दावा

 

मध्य प्रदेश के सबसे बड़े कृषि विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिकों ने 15 प्रकार की जैविक खाद तैयार की है. इनका नाम जवाहर फर्टिलाइजलर रखा गया है.

वैज्ञानिकों के अनुसार यह कहा जा रहा है कि जवाहर फर्टिलाइजर के इस्तेमाल से फसल का उत्पादन बढ़ेगा साथ ही उनकी गुणवत्ता में भी काफी सुधार आएगा.

 

देश में अब कृषि को रासायनमुक्त करने की तैयारी  चल रही है. इससे लिए रायासनिक खाद और कीटनाशक के विकल्प के तौर पर जैविक खेती को अपनाया जा रहा है.

जैविक खाद और कीटनाशकों के इस्तेमाल पर जोर दिया जा रहा है. किसानों को जैविक खेती करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है.

इसके साथ ही अब किसानों को जीरो बजट नैचुरल फार्मिंग के लिए भी प्रोत्साहित किया जा रहा है. ऐसे में एक अच्छी खबर मध्यप्रदेश से आयी है.

जहां कृषि विश्विद्यालय के वैज्ञानिकों ने जैविक खाद का उत्पादन करने में एक बड़ी  सफलता हासिल की है.

 

बताया जा रहा है कि इन खादों का उपयोग करके किसान कम लागत पर अधिक पैदावार प्राप्त कर सकते हैं और इसमें कीटों और बीमारियों के लगने का खतरा भी कम होता है.

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक राज्य के  के सबसे बड़े कृषि विश्वविद्यालय ने जैविक खाद बनाकर किसानों की इस समस्या का समाधान निकाला लिया है.

गौरतलब है कि राज्य के किसानों ने रासायनिक उर्रवरकों के इस्तेमाल में 25 प्रतिशत तक की कटौती कर दी है. इसके साथ ही 15 से 20 फीसदी अधिक उत्पादन भी हासिल  किया है.

 

उत्पादन बढ़ने के साथ गुणवत्ता में आएगा सुधार

ट्रैक्टर जंक्शन के मुताबिक मध्य प्रदेश के सबसे बड़े कृषि विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिकों ने 15 प्रकार की जैविक खाद तैयार की है.इनका नाम जवाहर फर्टिलाइजलर रखा गया है.

वैज्ञानिकों के अनुसार यह कहा जा रहा है कि जवाहर फर्टिलाइजर के इस्तेमाल से फसल का उत्पादन बढ़ेगा साथ ही उनकी गुणवत्ता में भी काफी सुधार आएगा.

इन सभी जैविक खादों में हवा से नाइट्रोजन को अवशोषित करने के साथ पोटाश, फॉस्फोरस, जस्ता, बीज उपचारित, गलाने वाली पत्तियों और गेहूं-धान के अवशेषों के बायोडिग्रेडेबल शामिल हैं.

 

रासायनिक खाद से छुटकारा

माना जाता है कि रासायनिक खाद के लगातार हो रहे इस्तेमाल के कारण मिट्टी में इसका रहता है.

इसलिए यह सलाह दी जाती है कि लगातार कम से कम तीन साल तक जैविक खाद का इस्तेमाल करना पड़ता है, तब जाकर किसानों को रासायनिक खादग से मुक्ति मिल जाती है.

इसका तरीका यह होता है कि  पहले वर्ष में 25 प्रतिशत रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल किया जाता है, दूसरे साल 50प्रतिशत औऱ तीसरे साल 75 प्रतिशत तक रासायनिक खाद के इस्तेमाल को कम करके चौथे साल में पूरी तरह से जैविक खाद का इस्तेमाल किया जाता है.

 

दो तरह के जैविक खाद किए गए हैं तैयार

जवाहरलाल कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा जो खाद तैयार की गयी है वह दो तरीके की है, किसानों को पाउडर औऱ लिक्विट दोनों प्रकार के खाद मिलेंगे.

यह किसानों को उपर निर्भर करता है कि वो कौन सा खाद लेना चाहते हैं.

पाउडर जैविक खाद का इस्तेमाल किसान खेती के लिए छह महीने तक कर पाएंगे बल्कि लिक्विड खाद का इस्तेमाल एक साल तक कर पाएंगे.

 

जैविक खाद इस्तेमाल करने के फायदे
  • जैविक खाद से किसान लंबे समय तक खेती कर सकते हैं, पर्यावरण और मिट्टी पर इसका कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ती है.
  • जैविक खाद सस्त होतें है और किसान इसे अपने घर पर भी बना सकते हैं इसलिए किसानों को रासायिनक खाद खरीदने की तुलना में लागत कम आती है. इससे किसानों के खर्च में कमी आती है और कमाई बढ़ती है.
  • जैविक उत्पादों की बाजार में अच्छी मांग और इसके दाम भी अच्छे मिलते हैं.

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