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खेतों में क्यों लगती है आग, जानें इसका कारण व उपाय

 

खेतों में लगती है आग

 

किसानों के खेतों में हर साल आग लग जाती है, जिससे उनकी मेहनत पर पानी फिर जाता है.

अब खेतों में आग लगने का कारण क्या है और इससे बचने का क्या उपाय है, आइये जानते हैं इस लेख में.

 

हर साल हम अनियंत्रित आग के कारण होने वाले गंभीर प्रभाव का अनुभव करते हैं.

शुष्क सर्दियों के दौरान, सूखे मैदान की झाड़ियों की रगड़ की वजह से आग उत्पन्न होकर तेजी से फैलती है जो खेतों और फसलों को नष्ट कर देती है और यहां तक कि जीवन की हानि भी होती है.

 

खेतों में क्यों लगती है आग, क्या है इसका कारण

वहीं, अल्टरनेटिव्स टू क्रॉप रिड्यूस बर्निंग इन इंडिया के एक अध्ययन के अनुसार, उत्तर पश्चिम भारत के किसान लगभग 23 मिलियन टन चावल-गेहूं के भूसे को जलाते हैं, ताकि वे बुवाई के लिए जमीन को जल्दी से साफ कर सकें.

 

लेकिन वह यह नहीं सोचते कि इसका प्रभाव कितना विनाशकारी होता हैं.

इसके अतिरिक्त, बिजनेस स्टैंडर्ड की एक रिपोर्ट के अनुसार, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारियों ने पिछले साल कहा था कि पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने से उस अवधि के दौरान राजधानी के कुल वायु प्रदूषण में 20-30% का योगदान रहा है.

तो आप खुद सोचिए की खेतों में लगी से किसानों को नुकसान तो है ही साथ ही आम जनता भी इसकी चपेट में आ जाती है.

हालांकि यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि फसल जलने से केवल 15 दिनों से लेकर एक महीने तक वायु गुणवत्ता संकट बढ़ जाता है. ऐसे में हमें इसके तत्काल समाधान की बेहद आवश्यकता है.

 

खेतों में आग से बचने के उपाय

वेस्ट डीकंपोजर

नेशनल सेंटर फॉर ऑर्गेनिक फार्मिंग के वैज्ञानिकों ने एक ‘वेस्ट डीकंपोजर’ सॉल्यूशन विकसित किया है जो प्रभावी सूक्ष्मजीवों से बना है, जो फसल अवशेषों के कंपोस्टिंग को प्रेरित करता है.

कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, यह फसल के पौधों की कटाई के बाद डंठल पर इसक छिड़काव करके और इसे एक महीने के लिए छोड़ दिया जाता है.

वेस्ट डीकंपोजर एक छोटी बोतल में आता है, जिसे किसानों को मात्र ₹20 की कीमत पर वितरित किया जाता है.

केंद्र के अधिकारियों के अनुसार, समाधान 30 दिनों में 10,000 मीट्रिक टन से अधिक जैव अपशिष्ट को विघटित कर सकता है.

इसका उपयोग स्प्रे और ड्रिप सिंचाई के माध्यम से भी किया जा सकता है”.

 

फसल के ठूंठ को पशु चारा, खाद, कार्डबोर्ड में परिवर्तित करना

हाल ही में एक ट्वीट में, प्रख्यात कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन ने कहा, “दक्षिण भारत में, पराली नहीं जलाई जाती क्योंकि ये पशु चारा के रूप में आर्थिक मूल्य देती है.

आगे इन्होंने कहा कि हमें धान की पराली को इको-आपदा का एजेंट बनाने के बजाय आय में बदलने के लिए किसानों के साथ  मिलकर कदम उठाना चाहिए.

आप पराली को कागज, गत्ते और पशुओं के चारे सहित उत्पाद बनाने के लिए भी इस्तेमाल कर सकते हैं.

 

उदाहरण के लिए, हाल ही में पराली ना जलाने की अपील करते हुए कई राज्यों ने पराली के बदले खाद देने का एक्सचेंज ऑफर भी निकाला.

साथ ही इसको ना जलाया जाये और किसान इसको अपनी आय में बदल सके इसके लिए कुछ राज्य सरकारों ने पराली जलाने पर प्रतिबंध लगते हुए इसपर जुर्माना भी लगाया था.

 

हैप्पी सीडर मशीन

पराली को जलाने के बजाय हैप्पी सीडर नामक एक ट्रैक्टर-माउंटेड मशीन “चावल के भूसे को काटती है और उठाती है, और फिर मिट्टी में गेहूं बोती है.

साथ ही यह बोए गए क्षेत्र पर पुआल को गीली घास के रूप में जमा करती है.

source : krishijagranhindi

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