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हल्दी जैसी कम लागत वाली फसलों से भी कमा सकते हैं बढिया मुनाफ़ा

 

हल्दी की खेती

 

हल्दी का ना सिर्फ मसालों में, बल्कि औषधि के रूप में भी इस्तेमाल होता आया है. मसालों का देश कहे जाने वाले भारत में हल्दी मसालों में हल्दी एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है.

खाने में अगर हल्दी ना हो तो खाना बेरंग के साथ-साथ बेस्वाद भी लगने लगता है. वहीं, इसका इस्तेमाल भारतीय संस्कृति में हमेशा से होती आयी है.

 

भारत के उत्तर पूर्वी क्षेत्र में इसका इस्तेमाल पूजा-पाठ में होता आया है.इतना हीं नहीं सर्दियों के मौसम में ठण्ड से बचने के लिए भी लोग इसका सेवन करते हैं, ख़ासकर बच्चों को दूध में हल्दी मिलाकर पिलाया जाता है.

दुनियाभर के किसान इसकी खेती से जुड़कर अच्छी उपज के साथ मुनाफा कमा रहे हैं.

भारत में इस फसल की बुवाई किसान मई महीने में शुरू कर देते हैं. इस फसल की ख़ासियत यह भी है इसकी खेती आप छाये या बगीचे में कर सकते हैं.

किसानों को इसकी बुवाई के समय विशेष ध्यान देने की जरूरत होती है.

अगर बुवाई के वक़्त सही किस्मों का चयन करें, तो मुनाफा और अधिक कमा सकते हैं.

आकड़ों के मुताबिक किसान करीब 2 लाख हेक्टेयर के क्षेत्रफल में हल्दी की खेती कर रहे हैं.

वैसे तो बाजार में हल्दी की कई किस्में मौजूद हैं, लेकिन कुछ किस्में ऐसी भी हैं जो बहुत उम्दा हैं.

इनसे किसान बढ़िया उत्पादन प्राप्त कर अपनी आय बढ़ा सकते हैं. हल्दी की खेती सामान्यतः सभी प्रकार की भूमियों में की जा सकती है.

इसकी उपज के लिए किसी एक जलवायु का होना जरुरी नहीं है.

उचित जल-निकास, बलुई दोमट या चिकनी दोमट मिट्टी जिसमें जीवांश की अच्छी मात्रा हो, उस तरह की मिट्टी हल्दी के उपज के लिए अच्छा माना जाता है.

 

हल्दी की उम्दा किस्म

सुगंधम

हल्दी की ये किस्म को तैयार होने में 200 से 210 दिन लग जाते हैं. वहीं, इस किस्म के आकर की बात करें, तो इस हल्दी का आकार थोड़ा लंबा होता है और रंग हल्का पीला होता है.

किसान इस किस्म से प्रति एकड़ 80 से 90 क्विंटल उपज प्राप्त कर सकते हैं. इस किस्म से किसानों को मुनाफा भी अच्छा होता है.

 

पीतांबर

हल्दी की इस किस्म को केन्द्रीय औषधीय एवं सगंध अनुसंधान संस्थान के द्वारा विकसित किया गया है.

हल्दी की सामान्य किस्में फसल 7 से 9 महीने में तैयार होती हैं, लेकिन वहीं पीतांबर 5 से 6 महीने ही तैयार हो जाती है.

इस किस्म में कीटों से होने वाले नुकसान का ज्यादा असर नहीं पड़ता. ऐसे में अच्छी पैदावार होती है. एक हेक्टेयर में 650 क्विंटल तक पैदावार हो जाती है.

 

सुदर्शन

हल्दी की यह किस्म आकार में भले ही छोटी होती है, लेकिन दिखने में खूबसूरत होती है.

वहीं इसके पकने का समय लगभग 230 दिन का होता है. प्रति एकड़ 110 से 115 क्विंटल की पैदावार होती है.

 

सोरमा

इसका रंग सभी किस्मों से अलग होता है. हल्के नारंगी रंग वाली हल्दी की ये फसल 210 दिनों में पककर तैयार हो जाती है.

प्रति एकड़ उत्पादन 80 से 90 क्विंटल होता है.

 

इन किस्मों के अलावा भी कई हल्दी की अन्य उन्नत किस्में भी हैं, जिनकी पैदावार अच्छी होती है.

जैसे- सगुना, रोमा, कोयंबटूर, कृष्णा, आरएच 9/90, आर.एच- 13/90, पालम लालिमा, एन.डी.आर 18, बी.एस.आर 1, पंत पीतम्भ आदि.

इन किस्मों से भी किसान अच्छी पैदावार ले सकते हैं.

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