अब लाखों की हो रही कमाई
हाइटेक तरीके से टमाटर की खेती करने पर डबल हो जाता है उत्पादन, मध्य प्रदेश के प्रगतिशील किसान दिग्विजय सिंह सोलंकी ने बताई अपनी सफलता की कहानी.
मध्य प्रदेश के खरगोन जिले के दिग्विजय सिंह सोलंकी ने एमकॉम तक पढ़ाई की हुई है.
शुरुआत में उनकी दो जॉब लगी थी, उसके बाद उन्होंने पुलिस विभाग में 8 साल सर्विस की, इनकी पैतृक जमीन खरगोन के ग्राम देवली में है.
शुरू से ही उनको खेती किसानी का शौक रहा था, जिसके चलते कुछ नया करने की चाह में वो खेती में ही आ गए.
नौकरी छोड़ कर नई तकनीक से टमाटर की खेती शुरू कर दी. जिससे वो अब हर साल लाखों रुपये की कमाई कर रहे हैं.
उन किसानों के लिए प्रेरणास्रोत बने हुए हैं, जो पारंपरिक खेती के मोह को त्याग नहीं पाते.
इस बार सोलंकी ने 14 एकड़ में टमाटर लगाया है. जिसमें 7 एकड़ में हाइब्रिड वैरायटी है और 7 एकड़ में देसी.
सोलंकी बताते हैं कि शुरुआत में पुश्तैनी जमीन पर परंपरागत खेती से शुरुआत की, जिसमें हम कपास की खेती और सोयाबीन की खेती करते थे.
जिसमें खर्च अधिक और मुनाफा कम होता था. फिर कुछ नया करने की सोची.
इसके लिए कृषि विज्ञान केंद्र के कृषि वैज्ञानिकों से मिले. वैज्ञानिकों ने बताया कि बागवानी की फसलें काफी अच्छी होती हैं.
कमाई की संभावना ज्यादा होती है. उसके बाद सिंह ने टमाटर की खेती से शुरुआत की.
परंपरागत तौर तरीके में क्या दिक्कत थी?
दिग्विजय शुरू में परंपरागत तौर तरीकों से टमाटर की खेती करते थे.
जिसमें उन्होंने देखा कि जो फल होता है वह मिट्टी के संपर्क में आने से खराब हो जाता है. इतना अच्छा मार्केट भी नहीं मिल पाता.
उसको देखते हुए उन्होंने टमाटर की खेती में नई तकनीक अपनाने की सोची और उनको तार और बांस का कंसेप्ट समझ में आया.
वैज्ञानिकों ने उन्हें हाइटेक एग्रीकल्चर करने को कहा. जिसमें मल्चिंग टेक्निक, ड्रिप और बांस बल्ली, तार की पूरी टेक्नोलॉजी समझाई.
अब तार और बांस की सहायता से टमाटर के पौधों को लगाते हैं.
अब कैसे करते हैं खेती
सोलंकी खेत की तैयारी में प्लाऊ करवाने के बाद अच्छा रोटावेटर करते हैं और 5 फीट पर बेड बनाकर उस पर ड्रिप बिछवाते हैं.
उस पर मल्चिंग बिछाई जाती है. जिसके चलते किसी भी प्रकार की खरपतवार खेत में नहीं होती.
उसके बाद एक एक फुट पर होल किया जाता है. जो पौधे होते हैं वह नर्सरी में तैयार किए जाते हैं.
नर्सरी का जो पौधा होता है उसको एक महीने बाद खेत में प्लांटेशन कर दिया जाता है.
उसके बाद पानी और फर्टिगेशन ड्रिप के माध्यम से दिया जाता है.
साफ-सुथरा होता है फल
रोपाई के 30 दिन बाद पौधे की अच्छी ग्रोथ हो जाती है.
सेकंड ब्रांच जैसे ही निकलती है तो लेबर को अच्छी तरह से बता कर इसमें तीन तार लगाए जाते हैं.
एक तार सबसे ऊपर रहता है, 6 फीट पर और एक तार सबसे नीचे रहता है. उस पर पहले एक महीने में पौधे की ब्रांच की बंधाई की जाती है.
फिर उसके बाद 60 से 70 दिन की जब फसल होती है और पौधा लगभग दो महीने का हो जाता है तब उसकी बंधाई सबसे टॉप वाले तार पर की जाती है.
पांच फीट पर बांस होते हैं, उनको क्रॉस पद्धति से लगाया जाता है.
इस विधि से यह फायदा होता है कि एक भी फल मिट्टी के संपर्क में नहीं आता. जिससे हमको मार्केट वैल्यू बहुत अच्छी मिलती है.
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