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56 साल की उम्र में इन महिला ने शौक में शुरू की खेती

 

अब उगा रही है 60 प्रकार के फल

 

दीप्ती ने कभी भी अपने बगान के लिए माली नहीं रखा, उनका मानना है कि गार्डनिंग में खुद के अनुभव से इंसान सबसे ज्यादा सीखता है.

उन्हें जहां से भी गार्डनिंग से जुड़ी जानकारी मिलती, वह लेती रहती थीं और उसे आजमाने की कोशिश भी करती थीं.

 

बागवानी का शौक बड़ा फायदेमंद होता है, इसमें आपका मन भी लगा रहता है और खाने के लिए खुद के उगाए हुए ताजे फल और सब्जियां खाने के लिए मिल जाती है.

गुजरात के सूरत की रहनेवाली एक ऐसी ही महिला है जिन्होंने इस शौक को रखा और उनके घर में एक हजार से अधिक पौधे हैं.

उनकी छत का कोई कोना ऐसा नहीं हैं जहां पर हरियाली नहीं है. उन्होंने बहुत ही बेहतरीन तरीके से हर एक इंच जमीन का इस्तेमाल किया है.

 

सालों से पड़े पौधे हैं उनके साथी

56 वर्षीय दीप्ती को बचपन से ही बागवानी करने का शौक था, घर में भी पेड़ पौधे लगाने की जगह थी तो उनका शौक बढ़ता गया.

इसी का परिणाम है कि आज उनके घर में 60 से अधिक किस्म के गुलाब कैक्टस वाटर लिली और मौसमी सब्जियां लगीं हुई है.

दीप्ती पेशे से शिक्षक है और काम के बाद बागवानी के लिए भी समय निकालती है और गार्डन का सारा काम खुद ही करती हैं.

वो बताती हैं कि कई वर्षों से यह पेड़ पौधे उनकी साथी हैं और शाम अक्सर उनके साथ बिताती हैं. पेड़ पौधों के बीच रहने से उनकी थकान खत्म हो जाती है और उनका तनाव भी दूर हो जाता है.

 

विरासत में मिला बागवानी का ज्ञान

द बैटर इंडिया को दीप्ती ने बताया कि उनरे पिता नौकरी के साथ साथ खेती बारी भी करते थे. बागवानी का ज्ञान उन्हें अपने पिताजी से मिला.

उनसे सीखकर वह बचपन में फूलों के पौधे लगाया करती थीं. उन्हें गुलाब उगाने का बेहद शौक़ था.

बागवानी की शुरुआत भी उन्होंने गुलाब और गुड़हल के पौधों से ही की थी. अपने घर में तो वह सब्जियां भी उगाया करती थीं.

पर शादी के बाद वो ससुराल आ गयी. ससुराल में जगह तो थी पर किसी को बागवानी का शौक नहीं था.

 

ससुराल में की शुरुआत

दीप्ती बताती है कि ससुराल आने के बाद उन्होंने घर में सबसे पहले सजावटी पौधे लगाने शुरु किये.

इसके बाद धीरे धीरे बड़े गमले में सब्जियां और फल लगाना शुरू  किया.

जिसे मेरे घरवालों ने बेहद पसंद किया और कुछ ही सालों में मेरा घर कई पेड़-पौधों से भर गया.

 

जहां से जानकारी मिलती है दीप्ती ले लेती हैं

दीप्ती ने कभी भी अपने बगान के लिए माली नहीं रखा, उनका मानना है कि गार्डनिंग में खुद के अनुभव से इंसान सबसे ज्यादा सीखता है.

उन्हें जहां से भी गार्डनिंग से जुड़ी जानकारी मिलती, वह लेती रहती थीं और उसे आजमाने की कोशिश भी करती थीं.

इसके अलावा उन्होंने एक कृषि मेले में तीन दिन का एक छोटा सा टेरेस गार्डनिंग कोर्स भी किया था.

जहां उन्हें कंपोस्ट बनाने और मौसम के हिसाब से सब्जियां उगाने के बारे में बताया गया था.

ट्रेनिंग के बाद उन्होंने साल भर कुछ न कुछ सब्जियां उगाना शुरू किया.

 

यह पौधे हैं उनके बगान में

उनके घर पर थाई और देसी मिलाकर तीन किस्मों के अमरुद के पेड़ हैं, पपीते की दो किस्में, अनार के तीन पेड़, ड्रैगन फ्रूट की दो किस्में, सीताफल की दो किस्मों सहित अंजीर, रामफल, लक्ष्मणफल, सफ़ेद जामुन, संतरा, मौसम्बी, एप्पल, केला, चेरी, पैशन फ्रूट के अलावा और भी कई प्रकार के फल लगे हुए हैं.

 

खुद से तैयार करती है कंपोस्ट

दीप्ती अपने पौधो में किसी प्रकार के रासायनिक खाद या कीटनाशक का प्रयोग नहीं करती है.

वह अपने घर के गीले कचरे और गार्डेन वेस्ट से कंपोस्ट खाद तैयार करती है.

इसके अलावा बाहर से वर्मी कंपोस्ट लाकर भी इस्तेमाल करती है. अब उनके छत पर जगह भी कम पड़ गयी है.

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