चार गुना अधिक होगी पैदावार
पौधे लगाने के लिए मिट्टी का प्रयोग नहीं किया जाता है. बल्कि इनके लिए खास तरह का मिक्सचर तैयार किया जाता है.
इसमें कोकोपिट, वर्मी कंपोस्ट और पारालाइट मिलाया जाता है.
तीन हिस्सा कोकोपिट एक हिस्सा वर्मी कंपोस्ट का और एक हिस्सा पारालाइट का मिलाकर छोटे ग्लासनुमा डिब्बे में रखा जाता है.
हाइड्रोपोनिक कृषि की नवीनतम तकनीकों में से एक है. इस तकनीक के जरिए अब स्ट्रॉबेरी की खेती भी की जा सकती है.
इस तकनीक से उगाए गए स्ट्रॉबेरी की गुणवत्ता काफी अच्छी होती है, साथ ही इससे पैदावार भी अच्छी होती है.
हाइड्रोपोनिक तकनीक का सबसे बड़ा फायदा यह होता है कि किसी भी मौसम में आप इसमें सभी प्रकार के फल और सब्जियों की खेती कर सकते हैं. साथ ही किसी भी प्रकार के मौसम का इसमें फर्क नहीं पड़ता है.
धूप, बारिश और ओलों से भी इस तकनीक में सब्जियों को नुकसान नहीं होता है, क्योंकि यह पूरी तरह इनडोर फार्मिंग होती है.
इस तकनीक से अब स्ट्रॉबेरी की खेती भी की जा रही है. इससे किसान बंपर उत्पादन हासिल कर रहे हैं.
हाइड्रोपोनिक में कैसे होती है स्ट्रॉबेरी की खेती
स्ट्रॉबेरी के पौधे छोटे होते हैं और फलों से लदने के बाद कोमल मुलायन डालियां झुक जाती हैं.
इस पौघे के इसी प्रकृति को देखते हुए हाइड्रोपोनिक तकनीक से इसकी खेती करने के बारे में सोचा गया.
यह प्रयोग काफी सफल भी रहा. हिसार हरियाणा के वैज्ञानिकों ने हाइड्रोपोनिक तकनीक से स्ट्रॉबेरी की खेती करने के लिए प्रयोग किया था.
बता दें कि हाइड्रोपोनिक खेती पाइप के अंदर होती है. इसलिए स्ट्रॉबेरी की खेती करने के लिए एक नया तरीका अपनाया गया.
इसकी खेती के लिए हाइड्रोपिनका का स्ट्रक्चर ट्रॉलीनुमा बनाया जाता है. फिर पाइप के अंदर निश्चित दूरी बनाकर उसमें छेद किया जाता है. इन छेद में पौधे लगाए जाते हैं.
मिट्टी का नहीं होता है प्रयोग
पौधे लगाने के लिए मिट्टी का प्रयोग नहीं किया जाता है. बल्कि इनके लिए खास तरह का मिक्सचर तैयार किया जाता है.
इसमें कोकोपिट, वर्मी कंपोस्ट और पारालाइट मिलाया जाता है.
तीन हिस्सा कोकोपिट एक हिस्सा वर्मी कंपोस्ट का और एक हिस्सा पारालाइट का मिलाकर छोटे ग्लासनुमा डिब्बे में रखा जाता है.
इसे 75 सेंमी भरा जाता है. इससे पहले डिब्बे में तीन से चार सेमी रेडियस का छेद किया जाता है ताकि पौधों की जड़े उससे आसानी से बाहर निकल सके.
तीन से चार गुणा अधिक होती है पैदावार
इस तरह से पौधे लगाने से खरपतवार की समस्या नहीं होती है साथ ही मल्चिंग की भी जरुरत नहीं होती है.
जिससे हर बार की लागत में कमी आती है. इसके अलावा उतनी ही जमीन में इस विधी से खेती करने पर तीन से चार गुणा अधिक पौधे लग जाते हैं.
अगर खेत में पौधे लगाए तो प्रति बीघा 10 से 12 हजार स्ट्रॉबेरी के पौधे लगाये जा सकते हैं जबकि इस तकनीक का उपयोग कर प्रति बीघा 30 से 50 लगाए जा सकते हैं.
इस तरह तीन से चार गुणा अधिक पैदावार हो जाती है. इससे कमाई भी बढ़ जाती है.
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