जानें कैसे मिलता है प्रमाणपत्र
जैविक (आर्गेनिक) खेती की बात तो अब आम हो चली है, इससे आगे मध्य प्रदेश में अब किसान पूरे खेत को ही जैविक बना रहे हैं। इसमें एक नहीं बल्कि सारी फसलें ही जैविक होती हैं।
कोरोना काल में अनाज के प्राकृतिक होने और उसकी शुद्धता पर जोर बढ़ने के साथ ही किसानों की जैविक खेतों में रुचि बढ़ गई है। जैविक खेत में खाद, बीज से लेकर पानी तक शुद्ध या केमिकल रहित उपयोग किया जाता है।
मध्य प्रदेश में तीन साल में 1200 से बढ़कर 2000 हेक्टेयर हुआ जैविक खेत का रकबा
यही नहीं, प्रदेश में कृषि विभाग खेतों का जैविक खेत के रूप में प्रमाणीकरण भी कर रहा है। प्रदेश में तीन साल में जैविक खेतों का रकबा 1200 से बढ़कर दो हजार हेक्टेयर हो गया है।
इसमें उत्पादित फसल को जैविक का प्रमाण पत्र भी मिलता है। विदिशा, हरदा, धार, मंदसौर सहित कुछ अन्य जिलों में किसान प्रमाणित जैविक खेतों में फसल उगा रहे हैं। कोरोना काल के बाद खेतों का जैविक प्रमाणीकरण करवाने वाले किसानों की संख्या भी बढ़ी है।
शुल्क देकर होता है पंजीकरण
कृषि विभाग के अधीन जैविक प्रमाणीकरण संस्था के उप संचालक एमडी धुर्वे बताते हैं कि खेत प्रमाणीकरण के लिए किसान को निर्धारित शुल्क देकर पंजीयन कराना होता है। इसकी अवधि तीन साल की होती है।
इस दौरान कृषि विज्ञानियों की देखरेख में निर्धारित गाइडलाइन का पालन करना होता है। खेत में किसी भी रसायनयुक्त सामग्री का उपयोग नहीं किया जाता।
जैविक खाद और बीज के अलावा नदी-नालों के बजाय कुएं या ट्यूबवेल के पानी से ही सिंचाई करनी होती है।
तीन सालों तक इसी पद्धति से खेती करने के बाद उपज की प्रयोगशाला में जांच होती है। इसके बाद किसान को प्रमाण-पत्र दिया जाता है।
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किसान ब्रांडनेम से बेच सकते हैं जैविक उपज
किसान अपनी जैविक उपज को ब्रांडनेम से बेच सकता है। इसके लिए विभाग उन्हें आनलाइन बाजार की सुविधा भी उपलब्ध कराता है।
दरअसल, प्रदेश के कई जिलों में पिछले कुछ वर्षो से किसान जैविक खेती कर रहे हैं, लेकिन जैविक उपज का कोई अधिकृत प्रमाण नहीं होने से उन्हें बाजार में इसका अपेक्षित दाम नहीं मिल पाता था। कोरोना काल में खाद्यान्न की मांग बढ़ने पर इसमें गड़बड़ियां भी सामने आने लगीं।
इसी को देखते हुए किसान अब जैविक खेत का प्रमाण-पत्र हासिल कर अपनी उपज को बाजार में अलग पहचान दिला रहे हैं। विदिशा जिले में ही करीब 50 किसान जैविक खेत के लिए पंजीयन करवा चुके हैं। इनमें गेहूं, चने की फसल के अलावा औषधीय फसल करने वाले किसान भी शामिल हैं।
डेढ़ गुना तक अधिक मिलते हैं जैविक उपज के दाम
शमशाबाद तहसील के ग्राम पाली में जैविक खेत तैयार कर रहे लखन पाठक के मुताबिक उन्होंने गेहूं और अश्वगंधा के लिए अपने खेत का पंजीयन कराया है।
वे पांच साल से जैविक खेती कर रहे हैं, लेकिन प्रमाण-पत्र नहीं होने से उन्हें उचित बाजार नहीं मिल रहा था। बड़े शहरों में जैविक उपज के डेढ़ गुना अधिक तक दाम मिलते हैं।
गोकुलपुर के किसान लक्ष्मण सिंह मीणा का कहना है कि वह अब अपनी जैविक उपज आनलाइन भी बेच सकते हैं। इससे उन्हें अच्छा मुनाफा होगा।
विदिशा के किसान संजय राठी ने इस बार जैविक पद्धति से उगाई मटर बजारे के बजाय अपने खेत से ही बेची। उन्होंने खेत पर जैविक मटर का बोर्ड लगाया और इंटरनेट मीडिया पर इसका प्रचार भी किया।
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source : jagran.com
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