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अब भारत का कटहल पहुंचा लंदन

 

किसान ने बताया कैसे इसकी खेती से कमा रहे हैं 15 लाख

 

उत्तर-पूर्वी क्षेत्र से कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादों की निर्यात क्षमता को बढ़ाने की दिशा में बड़ी पहल करते हुए, आज 1.2 मीट्रिक टन (एमटी) ताजा कटहल की खेप त्रिपुरा से लंदन निर्यात की गई.

 

एक्सपोर्ट किए गए कटहल, त्रिपुरा स्थित कृषि संयोगा एग्रो प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड से खरीदे गए थे.

खेप को एपीडा सहायता प्राप्त सॉल्ट रेंज सप्लाई चेन सॉल्यूशन लिमिटेड की पैक-हाउस सुविधा में पैक किया गया और काइगा एक्जिम प्राइवेट लिमिटेड द्वारा निर्यात किया गया.

यह यूरोपीय संघ को निर्यात के लिए पहला एपीडा सहायता प्राप्त पैक हाउस था. जिसे मई 2021 में अनुमोदित किया गया था.

एपीडा नियमित रूप से उत्तर-पूर्वी राज्यों को भारत के निर्यात मानचित्र पर लाने के लिए निर्यात को बढ़ावा देने की गतिविधियों को अंजाम देता है. 

कटहल की खेप लंदन निर्यात करने के वर्चुअल कार्यक्रम में एपीडा के अध्यक्ष डॉ. एम अंगमुथु और त्रिपुरा सरकार के कृषि सचिव सीके जमातिया और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों ने भाग लिया.

 

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कटहल की खेती से लाखों कमाने का मौका

कटहल की खेती किसी भी प्रकार की मिट्टी में हो जाती है, लेकिन फिर भी इसकी बागवानी के लिए गहरी दोमट और बलुई दोमट मिट्टी उपयुक्त है.

इसकी खेती के लिए पानी की ज्यादा जरुरत होती है.  बीज से पौधे को उगाने के करीब 4 से 5 साल बाद फल लगने लगते हैं.

 

इसके लिए बीजों को कटहल से निकालते ही मिट्टी में उगा देना चाहिए. इसकी पौध बनाने के लिए दो विधि का उपयोग होता है.

बाज़ार में कटहल की अच्छी कीमत होती है.

 

अगर एक हेक्टेयर में करीब 150 से ज्यादा पौधे लगाए हैं, तो साल में 3 से 4 लाख तक की पैदावार हो सकती है.

कटहल का पौधा 3 से 4 साल में पैदावार देने लगता है. इसकी पैदावार अलग-अलग किस्मों के आधार पर होती है.

 

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उत्तर प्रदेश के साहरनपुर जिले में कटहल की खेती करने वाले अंकुर त्यागी बताते हैं कि जब उन्होंने इसकी खेती करनी शुरू की तो उनका बहुत मजाक बनाया गया है. लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी.

 

साल 2018 में पहली बार पेड़ों ने फल देना शुरू किया. पहले ही वर्ष में अंकुर ने करीब 8 लाख का कटहल बेचा.

अगली बार आमदनी बढ़कर 16 लाख और इस बार करीब 20 लाख रुपये का कटहल बेचा है.

 

अंकुर ने बताया कि बागवानी के बाद चार साल का सयंम रखना पड़ता है. इस दौरान आप नीचे खाली पड़ी जमीन और खेती कर सकते हैं.

इसके बाद 45 साल तक पेड़ फल देते हैं, हां समय-समय पर जरूरी दवाइयों का छिड़काव करना पड़ता है.

 

अमेरिका पहुंचा लाल चावल 

हाल ही में“लाल चावल” की पहली खेप असम से अमेरिका भेजी गई थी. आयरन से भरपूर “लाल चावल”असम की ब्रह्मपुत्र घाटी में बिना किसी रासायनिक उर्वरक के पैदा किए जाते हैं.

इस चावल की किस्म को ‘बाओ-धान’ कहा जाता है, जो असमिया भोजन का एक अभिन्न अंग है.

 

एपीडा खाद्य उत्पादों के निर्यात, मार्केटिंग रणनीतियों को विकसित करने, मार्केटिंग इंटेलिजेंस, अंतर्राष्ट्रीय अवसर, कौशल विकास, क्षमता निर्माण और उच्च गुणवत्ता वाली पैकेजिंग के लिए कदम उठाता है.

 

उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के उत्पादों को बढ़ावा देना एपीडा का मुख्य कार्य क्षेत्र है. एपीडा, क्षमता निर्माण, गुणवत्ता उन्नयन, बुनियादी ढांचे के विकास के मामले में उत्तर पूर्वी क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित करना जारी रखेगा.

खरीदारों को किसानों से जोड़ने और कृषि उपज की पूरी आपूर्ति श्रृंखला को मजबूत करने से उत्तर-पूर्वी क्षेत्र को अतिरिक्त फायदा मिलेगा.

 

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